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________________ प्रो व्यक्ति और समाज के व्यक्तिवादी, समष्टिवादी तथा समन्वयवादी स्वरूप का विवेचन प्रो० मुकुटबिहारी लाल इस गोष्ठी में उपस्थित दार्शनिकों को बौद्ध दर्शन और वाङ्मय जितना ज्ञान है उसकी तुलना में मेरी जानकारी नगण्य है। ऐसी स्थिति में प्रस्तुत विषय पर मेरा कुछ कहना अनाधिकार चेष्टा जैसा ही है। आप सब विद्वानों के सान्निध्य में जो कुछ में समझ पाया हूँ, वह यही है कि बुद्ध भगवान् की धारणा मूलतः व्यक्तिपरक और वैराग्यवादी थी। सांसारिक सुखवैभव का मोह त्याग कर परम शान्ति की प्राप्ति ही उसका लक्ष्य था। पर करुणा, अहिंसा और अक्रोध से समन्वित निर्वाण की अवधारणा निःसन्देह सांसारिक सुख की प्रेरणा पर आश्रित व्यक्तिवादी धारणा से बहुत भिन्न है। बौद्ध धारणा को समष्टिवादी भी नहीं समझा जा सकता। करुणा और अहिंसा स्वस्थ सामाजिक जीवन के महत्त्वपूर्ण आधार हैं। पर निर्वाण के साधन के रूप में चित्त की शुद्धि के निमित्त ही भगवान् बुद्ध ने भिक्षुओं को इनके अनुसरण का आदेश दिया था। करुणा ने आगे चल कर महाकरुणा तथा बोधिसत्त्व की अवधारणा का रूपधारण कर लिया। ये अवधारणाएँ सामाजिक दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । पर बौद्ध परम्परा के अन्तर्गत बोधिसत्त्व की तुलना कौटुम्बिक के बजाय एक ऐसे धर्मगुरु से की जा सकती है जो समाज और कुटुम्ब से अलग रहते हुए सबको सदुपदेश प्रदान करे। संघ समाज नहीं संस्थान है और उससे सम्बन्धित नियम समाजव्यवस्था के नियम नहीं समझे जा सकते । फिर भी व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों को निश्चित करते समय इन नियमों तथा करुणा, अहिंसा, अक्रोध, बोधिसत्त्व एवं बहुजनहिताय और बहुजनसुखाय के आदेशों और अवधारणाओं का उपयोग अवश्य ही उपादेय होगा । बौद्ध दर्शन की दृष्टि से व्यक्ति और समाज के पारस्परिक सम्बन्धों की वही धारणा ठीक होगी जो इन अवधारणाओं के निकटतम हो। इस समय व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों के बारे में जो अवधारणाएँ प्रचलित हैं उन सबको व्यक्तिवादी, समष्टिवादी और समन्वयवादी तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है । व्यक्तिवादी धारणाओं के अनुसार समाज व्यक्तियों का समूह है, व्यक्तिगत स्वार्थ की उपलब्धि व्यक्ति के क्रियाकलापों का मुख्य लक्ष्य है, और व्यक्तिगत हितों से .. परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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