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________________ महायानी साधक की दृष्टि से व्यक्ति, समाज तथा उनके सम्बन्ध श्री टशी पलजोर बौद्ध धर्म में वैराग्य को प्रधानता दी गयी है, क्योंकि भगवान् बुद्ध ने अपने विनेयजनों को धर्म की चरम सीमा पर पहुँचाने के लिए वैराग्य पर अधिक बल दिया है। बालपृथग्जनों में संसार के प्रति तीव्र आसक्ति रहती है। संसार के प्रति अभिनिवेश रहने से भवसागर से कदापि मुक्ति नहीं मिल सकती। जब बौद्ध भिक्षु गुरु से विनय की दीक्षा लेता है तो उसमें संसार के प्रति अवश्य ही वैराग्य होना चाहिए । वैराग्य न हो तो उसे दीक्षा लेने पर भी संवर उत्पन्न नहीं हो सकता। ___ बौद्ध धर्म तथा दर्शन, दोनों ही समाज के हित के लिए शाक्यमुनि द्वारा प्रतिपादित किये गये हैं। अतः बौद्ध संस्कृति अहिंसा एवं परार्थ की भावना पर आधारित है। हीनयानी शास्त्रों में केवल अहिंसा पर ही बल दिया गया है तथा महायानी शास्त्रों ने अहिंसा एवं परार्थ की भावना दोनों पर बल दिया है। अहिंसा की सीमा केवल मानवमात्र तक ही नहीं है। बुद्ध की अहिंसा के अन्तर्गत त्रिलोक के समस्त प्राणी आते हैं। यही कारण है कि महायानी साधक समस्त जीवों के कल्याणार्थ सर्वप्रथम स्वयं सर्वज्ञता प्राप्त करना चाहते हैं। इसी की प्राप्ति के लिए वे समस्त विद्याओं का अध्ययन करते हैं। महायानी साधक तीनों यानों के मार्गों का अभ्यास करते हैं। संक्षिप्त में महायानी साधकों की शिक्षा छः पारमिताएँ, दो नैरात्म्य, पाँच मार्ग, दशभूमि आदि हैं। विनय का मूल चार शिक्षायें ही है। ये हैं-हिंसा, परिग्रह, व्यभिचार तथा मिथ्या भाषण से विरति । नशीली चीजों से विरति के साथ ये पंचशील कहलाते हैं। इन्हीं पाँच मौलिक शीलों के अनेक अंग हो जाते हैं । यदि साधक इन पाँच शीलों का अपने जीवन में निष्ठापूर्वक आचरण करता है तो वह समाज का हित करता है । उसके द्वारा समाज का अहित कदापि नहीं हो सकता। यदि कोई व्यक्ति समाज में हिंसा करता है तो उससे स्वयं एवं समाज दोनों का अहित होता है। यदि साधक हिंसा न करने का व्रत लेता है तो उससे समाज में भय नहीं होता। सर्वप्रथम व्यभिचार पर ही विचार करने से यह प्रतीत होता है कि इससे समाज में कितना उपद्रव पैदा परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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