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________________ व्यक्ति और समाज के प्रति महायान के दृष्टिकोण महायान की दृष्टि बोधिसत्त्वन का उद्देश्य समाज कल्याण या प्राचीन शब्दावली में जगत् कल्याण है । बोधिचित्त, महाकरुणा और प्रतीत्यसमुत्पाद के सिद्धान्त सबसे प्रबल सिद्धान्त हैं जो समाज के प्रति व्यक्ति के दृष्टिकोण में अभूतपूर्व क्रान्ति लाते हैं । इसलिए महायान दर्शन की दृष्टि से समाज की प्रधानता सुनिश्चित है । बोधिचित्त एक ऐसी प्रवृत्ति होती है जो मानव समाज को ही नहीं, अपितु समस्त जीवों को पूजनीय समझती है । अतः कहा है कि बुद्धधर्मोदयांशस्तु श्रेष्ठः सत्त्वेषु विद्यते । एतदंशानुरूप्येण सत्त्वपूजा कृता भवेत् ॥ बोधि ० ६ । ११८ १२१ । बोधिचित्त से स्वार्थ भावना को समाप्त किया जाता है । बोधिसत्त्व समझता है। कि सभी दुःख स्वार्थ की भावना से ही उत्पन्न होते हैं । अतः संसार में धनी वर्ग भी दुःखी है । गरीब वर्ग भी दुःखी है शक्तिशाली राष्ट्र भी दुःखी है, निर्बल राष्ट्र भी दुःखी है | विज्ञान का दुरुपयोग करके एक दूसरे को नष्ट करने में लगे हुए हैं । इन सबके मूल में स्वार्थ की भावना है। इसके विपरीत कुछ लोग कम सम्पन्न होने पर भी सुखी दीखते हैं । इसका कारण परार्थ की भावना है। इसलिए महायान दर्शन का कहना है कि Jain Education International ये केचिद् दुःखिता लोके सर्वे ते स्वसुखेच्छया । ये केचित् सुखिता लोके सर्वे तेऽन्यसुखेच्छया || बोधि० ८।१२९ बोधिचित्त तथा प्रतीत्यसमुत्पाद के गर्भ में सारी समाज व्यवस्था निहित है । वर्णव्यवस्था, जातिप्रथा तथा रङ्गभेद आदि का इसमें कोई स्थान नहीं है । स्त्री तथा पुरुषों को भी अधिकार समान रूप से हैं । शक्तिशालियों तथा सम्पन्नों द्वारा कमजोरों का शोषण अनुचित होगा। किसी को भी किसी की इच्छा के विरुद्ध बल प्रयोग नहीं करना चाहिए। समाज के सभी सदस्यों को नैतिक शिक्षा मिलनी चाहिए। उसी नैतिक शिक्षा से ही समाज में नियन्त्रण रहता है । कुछ लोग सोचते होंगे कि बौद्ध धर्म में स्थायी सामाजिक व्यवस्था के न होने 'ही वह (बौद्ध धर्म) भारतवर्ष से लुप्त हो गया किन्तु यह धारणा सर्वथा गलत है । स्थायी व्यवस्था का अर्थ नित्य समाज की व्यवस्था से है तो यह बौद्ध अनुयायियों द्वारा स्वीकार्य नहीं है । नित्य व्यवस्था तो सम्भव ही नहीं है । क्षणिकवाद के आधार पर समाज की व्यवस्था अच्छी तरह से बनती है । समाज तथा व्यक्ति परिवर्तनशील होते हैं । यदि नित्य - व्यवस्था हो तो प्रगति असम्भव होगी । अनित्यता के आधार परिसंवाद-२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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