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________________ १०६ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं रूप ग्रहण करते हैं, फिर भी यह शरीर ग्रहण नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अभी आनन्द का आहार चल रहा है । धीरे-धीरे क्रमिक रूप से उनका पतन होता जाता है जो सम्भवतः सारे दुःख का कारण बनता है । (२) दूसरी ध्यान देने योग्य बात है बुद्ध का वह विश्वास जिसे रोज डेविड्स ने 'नार्मोलिज्म' के नाम से निरूपित किया है। इसके अनुसार जो कुछ होता है, किसी सहज नियम के अनुसार होता है । यदृच्छा के लिए कोई स्थान नहीं है । रोज डेविड्स इसे भी भारतीय चिन्तन की अपनी विशेषता मानते हैं जो सेमिटिक विचार-विधि में उपलब्ध नहीं है । जीवों की इच्छा पर होता तो सम्भवतः वे कभी भी आभा-लोक से च्युत न होते। किन्तु चूँकि उन्हें नियमानुसार च्युत होना था, इसीलिए वे कुछ नहीं कर सके। यह कहना अनुचित न होगा कि बुद्ध की दृष्टि में सहज नियमों का यह अनन्य बन्धन ही दुःख का मूल है । (३) यह बात विचित्र प्रतीत होती है कि पृथ्वी का उदय जीवों के अवतरण की उत्तरवर्ती घटना है । यह स्पष्ट नहीं है कि पृथ्वी के उदय के पूर्व अन्य महाभूत थे या नहीं। किन्तु यह स्पष्ट है कि जीवों के पतन को पृथ्वी के साथ जोड़ा गया है। (४) पतन के कई चरण हैं, किन्तु सभी के लिये स्वयं मनुष्य उत्तरदायी हैं। सबसे पहले पृथ्वी को चखने के कारण तृष्णा का जन्म होता है । फलस्वरूप आत्मप्रकाश का अन्त होता है । आनन्द का आहार पहले ही समाप्त हो चुका होगा । फिर लिंगभेद का जन्म अन्न खाने के फलस्वरूप बताया गया है तथा यह भी स्पष्ट किया गया है कि यौन सम्बन्ध भी तभी प्रारम्भ हुए जिसे सभी लोगों ने घृणा की दृष्टि से देखा। इसके बाद सबसे अधिक अवांछनीय कार्य प्रारम्भ हुआ = संग्रह । संग्रह के कारण ही मौसम और फसलें प्रारम्भ हुई, व्यक्तिगत सम्पत्ति का जन्म हुआ, अपराध प्रारम्भ हुए तथा समाज को संगठित करने की आवश्यता महसूस की गयी। आदि बौद्ध समाजदर्शन निश्चय ही सामाजिक समझौते के सिद्धान्त पर आधारित है। अपराधों की रोक थाम के लिए ही 'महा-सम्मत' की जरूरत पड़ी। ध्यातव्य है कि सुगत का अपना शाक्यगण महा सम्मत को अपना प्रथम पूर्वज मानती थी, तथा महा सम्मत का विचार महाभारत में भी उपलब्ध है । सच तो यह है कि जो सिद्धान्त पश्चिम में आधुनिक युग में विकसित हुआ, वह ईसा से कई शताब्दी पूर्व भारत में पूर्णतः विकसित हो चुका था। वर्ण व्यवस्था सामाजिक संघटन का ही पर्याय है चूँकि खेत की रक्षा के निमित्त संघटन प्रारम्भ हुआ था, इसलिये ,खत्तिय वर्ण सबसे पहले विकसित हुआ, परिसंचाव-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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