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________________ भूमिका (१) 'व्यक्ति, समाज और उसके सम्बन्ध' विषय पर आयोजित संगोष्ठी की सफलता इसमें है कि इसके द्वारा वे प्रश्न उभर कर आये, जो आधुनिक सन्दर्भ के हैं, और जिनके विश्लेषण या समाधान में परम्परागत भारतीय दर्शनों को प्रायः अप्रासंगिक मान लिया जाता है । इसकी सफलता का एक कारण यह भी है कि इस संगोष्ठी में परम्परागत शास्त्रों के विद्वानों के अतिरिक्त प्राच्य पाश्चात्य दर्शनों के विशेषज्ञ तथा विभिन्न समाज विज्ञानों के, यहाँ तक कि भौतिक विज्ञान के विद्वानों ने भी भाग लिया । अधिकांश विद्वानों ने निबन्ध लिखे और प्रायः सभी ने खुलकर विचारविमर्श में भाग लिया । यद्यपि व्यक्ति और समाज की समस्या पर इस गोष्ठी में विशेष कर बौद्ध दृष्टि से ही विचार किया गया, किन्तु अन्य भारतीय दर्शन भी इस प्रसंग में अछूते नहीं रहे । क्योंकि जीवन की आधुनिक समस्याओं पर समाजविज्ञानों का बौद्धदर्शन के साथ संवाद क्या सम्भव है ? इस प्रश्न पर सम्पूर्ण भारतीय चिन्तन क्या प्रासंगिक है, इस पर भी विचार करना सहज-सा हो गया । इस सम्पूर्ण प्रश्न के विचार-विमर्श में दो बातें कही गयीं । प्रथमतः यह कि इस प्रसंग में बौद्धों का दार्शनिक प्रस्थान अन्य भारतीय दर्शनों से बहुत कुछ भिन्न है और यह अन्य की अपेक्षा व्यक्ति समाज की समस्या के समाधान में अधिक सक्षम है । द्वितीयतः यह कि सामाजिक प्रश्नों के समाधान में बौद्धदर्शन को अन्य भारतीय दर्शनों के सहयोग की अपेक्षा है, विशेषकर अद्वैत वेदान्त की । गोष्ठी में प्रारम्भ से अन्त तक इसका पक्ष प्रतिपक्ष खड़ा रहा कि बौद्धदर्शन में वे कौन-से जीवन्त तत्त्व हैं जो आधुनिक सामाजिक समस्याओं के समाधान में सक्षम हो सकेंगे । एक पक्ष में जो विचार प्रकट किये गये, उसके मुख्य मुद्दे ये हैं'बौद्धदर्शन का लक्ष्य निर्वाण है, जबकि उसके विरोध में सामाजिक चिन्तन भौतिक एवं लोकमूल्यात्मक है ( प्रो० रिम्पोछे तथा सेम्पादोर्जे ) । सामाजिक दर्शन अधिकार एवं कर्तव्याधारित है, जबकि बौद्धदर्शन दृष्टि-प्रहाणवादी होने के कारण उससे निरपेक्ष है। डॉ० रामचन्द्र पाण्डेय ) । दोनों में भेद बताते हुए कहा गया कि समाजशास्त्रियों के अनुसार मनुष्य सामाजिक प्राणी है, जबकि बौद्धदर्शन मनुष्य को समाज से ऊपर उठाता है ( डा० वैद्यनाथ सरस्वती । । यह भी कहा गया कि अहंवादी व्यक्तिवादी अवधारणा समाज वैज्ञानिकों का है, उसका बुद्ध के करुणामय धारणाओं से मेल बैठाना किसी तरह सम्भव नहीं है । इसी प्रकार आधुनिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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