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________________ जैनधर्म एवं छोटानागपुर निकट के पंखा गाँव, जो आज सम्भवत: दक्षिण बंगाल के पुरुलिया जिले में अवस्थित है, से चार मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं। इनमें एक प्रतिमा वृषभनाथ की है, जिनके चारों ओर शेष सभी तीर्थंकर दिखाये गये हैं। इस स्थान से प्राप्त दूसरी प्रतिमा के मध्य में एक वृक्ष है, जिसपर एक बालक को बैठे दिखाया गया है। वृक्ष के नीचे यक्ष, यक्षी की प्रतिमा है। यक्षी की प्रतिमा के हाथ में एक बच्चा भी दिखाया गया है । इनके निकट सात व्यक्तियों को खड़े दिखाया गया है। जैन पुरावशेषोंवाला दूसरा प्रमुख केन्द्र दुलभी है, जो चाण्डिल से करीब ३५ किलोमीटर है। बेगलर के अनुसार इनमें कुछ प्रतिमाएँ निश्चित रूप से जैन हैं। उनके अनुसार उक्त स्थान पर ९वीं-१०वीं शती ई. में निश्चित रूप से कोई बड़ा जैन प्रतिष्ठान था, जिसके पश्चात् ही ११वीं शती ई. में हिन्दुओं ने मन्दिर आदि का निर्माण कराया होगा।१६ दुर्भाग्यवश, अब इस स्थान पर जैन प्रतिमाओं का कोई अवशेष नहीं रह गया है। दुलभी से कुछ मील दूर देवली नामक गाँव है, जहाँ प्राचीन जैन मन्दिरों के अवशेष हैं।१७ इस स्थान पर स्थित सबसे बड़े मन्दिर के गर्भगृह में एक जैन मूर्ति स्थापित है, जिनकी पहचान अरनाथ से की गई है । साधारण ग्रामीण हिन्दू इसे हिन्दू देवता की मूर्ति मानते हैं और इनकी पूजा भी करते हैं। आसन पर खड़ी यह मूर्ति लगभग तीन फीट ऊँची है। आसन पर एक मृग का चित्रण है। मुख्य प्रतिमा के ऊपर दो कतारों में खड़ी तीन-तीन तीर्थंकरों की नग्न मूर्तियाँ, जो दोनों तरफ अंकित हैं, यह स्पष्ट कर देती हैं कि यह जैन धर्म की ही मूर्तियाँ हैं। इस प्रमुख मन्दिर के अगल-बगल कुछ अन्य छोटे-छोटे मन्दिरों के अवशेष हैं। इसके निकट ही आधे मील की दूरी पर एक पेड़ के नीचे पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। वस्तुत: इस क्षेत्र में गहन अन्वेषण की आवश्यकता है, जो जैन धर्म के इतिहास में नये आयाम जोड़ने में सफल हो सकते हैं। बेगलर ने सुइसा गाँव, जो आज सिउसा के नाम से जाना जाता है, अनेक जैन प्रतिमाएँ देखी थीं । इनमें एक प्रतिमा पार्श्वनाथ की थी एवं दूसरी ऋषभनाथ की। धनबाद के निकटस्थ कतरासगढ़ भी कभी जैन धर्म का एक प्रमुख केन्द्र था।१९ कतरासगढ़ रेलवे स्टेशन से आधे मील की दूरी पर, दामोदर नदी के दोनों किनारों पर अनेक प्राचीन जैन मूर्तियाँ देखी गई थीं। सिंहभूम जिले से भी हमें अनेक जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। इनमें अनेक प्रतिमाएँ आज की मूलाग्राम में रखी हुई हैं। यह गाँव दालभूम अनुमण्डल के पटामदा अंचल में है । राँची संग्रहालय, राँची में इचागढ़-क्षेत्र से प्राप्त एक बड़ी ही सुन्दर जैन प्रतिमा संगृहीत है, जो इचागढ़ के पूर्व महाराजा श्री प्रभातकुमार आदित्यदेव के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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