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________________ 48 Vaishali Institute Research Bulletin No. 8 तीर्थंकरों के हाथ की अंगुलियाँ उनकी जाँघ को छूती दिखाई गई हैं। इन तीर्थंकरों को सामान्यत: कई तलवाले आसन पर खड़ा दिखाया गया है । उनतीस प्रतिमाओं में से सात पर अभिलेख खुदे हैं, जिनमें उनके दाताओं का नाम खुदा है। महावीर की एक प्रतिमा में नौ सेवक दिखाये गये हैं। कुन्थुनाथ की भी एक प्रतिमा में उनके सहयोगियों की संख्या नौ दिखाई गई है, जबकि अन्य दो प्रतिमाओं में उनकी संख्या आठ है । पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा में उनके नौ भक्तों अथवा सेवकों को आसन पर बैठे दिखाया गया है । उनकी एक अन्य प्रतिमा में दो भक्त सर्प दिखाये गये हैं । पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा में एक भक्त को उनके पाँव के निकट बैठा दिखाया गया है। महावीर की प्रतिमाओं के साथ हमें जहाँ सिंह देखने को मिलता है, पार्श्वनाथ की पहचान उनके सर्प-फन के आधार पर की जाती है। वृषभनाथ की अष्टधातु - प्रतिमाओं में हमें वृषभ देखने को मिलता है तो कुन्थुनाथ, चन्द्रप्रभ, अजितनाथ, नेमिनाथ और विमलनाथ के साथ क्रमश: बकरी, अर्द्धचन्द्र, हाथी, शंख और सुअर दिखाया गया है। अम्बिका की प्रतिमा में उनके साथ सिंह अंकित है । ये सभी प्रतिमाएँ ११वीं - १२वीं शती ई. की मानी जाती हैं । अलुवारा से हमें अनेक प्रस्तर- प्रतिमाएँ भी प्राप्त हुई हैं, जो भारतीय इतिहास के मध्यकाल की हैं । यहाँ से प्राप्त इन प्रस्तर - प्रतिमाओं में महावीर, शान्तिनाथ एवं पार्श्वनाथ की दो-दो प्रतिमाएँ एक लांछन-विहीन जैन तीर्थंकर की स्थानक प्रतिमा एवं एक तीर्थंकर का मस्तक है। तीन यक्षी प्रतिमाएँ भी इस स्थान से प्राप्त हुई हैं। इस स्थान से हमें एक चौमुख भी प्राप्त हुआ है, जिसके चारों ओर तीर्थंकरों की स्थानक प्रतिमा है । ये सभी प्रतिमाएँ पटना-संग्रहालय में संगृहीत हैं । अलवारा के निकट ही कुम्हारी एवं कुमारदाग नामक दो गाँव है, जहाँ कुछ प्राचीन जैन मूर्तियाँ देखी गई थीं। यहाँ इन गाँवों में कुछ प्राचीन अभिलेख भी प्राप्त हुए थे, जिनमें एक तो एक स्थानीय व्यक्ति द्वारा ही वहाँ से हटा दिया गया था । १३ पाकबीरा में भी अनेक प्राचीन प्रस्तर- प्रतिमाएँ देखने को मिली थीं । बेगलर के अनुसार इस स्थान पर उनके मन्दिर एवं मूर्तियाँ, जिनसे जैन धर्म की प्राचीनता संकेतित होती हैं, देखने को मिलीं। इनमें सबसे प्रधान एक नग्न प्रतिमा थी, जो ७.५ फीट ऊँची थी । यहाँ आसन पर एक कमल का चिह्न देखने को मिला। इसके आसपास ही अनेक और प्रतिमाएँ थीं। दो प्रतिमाओं में वृषभ लांछन के रूप में चित्रित था और एक अन्य छोटी प्रतिमा में कमल इसके अतिरिक्त एक प्रतिमा में तीर्थंकरों के साथ सिंह, मृग, वृषभ और सम्भवत: मेमना देखने को मिलता है । १४ यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कमल पद्मप्रभनाथ का लांछन माना जाता है । परन्तु मेमना का किसी भी जैन तीर्थंकर से सम्बन्ध स्पष्ट नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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