SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 14 Vaishali Institute Research Bulletin No. 8 और, 'अहिंसा' के अर्थ की व्यापकता तथा उसके विभिन्न आयामों की परख ही अहिंसात्मक वृत्ति के उत्पन्न होने का एक उपकरण बन जा सकती है । जिस रूप में जैन विचार में अहिंसा की व्यापकता का चित्र खींचा गया है, उसे समझने की चेष्टा में ही हमारी हिंसात्मक वृत्ति शिथिल पड़ने लग जायेगी। वस्तुतः, हिंसात्मक वृत्ति की निर्ममता मात्र एक बात पर आधृत है—संवेदनशीलता के सोये रहने पर । यदि हिंसा करनेवाला व्यक्ति सोचने-विचारने लगे, संवेदनशील हो जाय तो वह हिंसात्मक कार्य कर ही नहीं पायेगा। हिंसात्मक मानसिकता उन्हीं में पनपती है, जो हिंसा-अहिंसा के विभिन्न पक्षों पर कभी विचार ही नहीं करते। उनमें हिंसा की 'सनक' होती है, जो हर प्रकार की संवेदनशीलता को दबाकर ही कार्यरत होती है। इस विचारशून्यता के कारण वे यह भी नहीं देख पाते कि हिंसात्मक वृत्ति का आघात अन्तत: उन्हीं पर होता है। अहिंसा पर सामान्य विचार करनेवाले हिंसात्मक कर्मों के-जैसे युद्ध , आतंकवाद आदि के दुष्परिणामों का विश्लेषण करते हैं, किन्तु, यह विश्लेषण भी तभी उपयोगी हो सकता है जब हमारी चेतनाहमारी संवेदनशीलता जाग्रत रहे। जैन विचार की विशिष्टता यही है कि वह अहिंसा के विभिन्न आयाम, उसकी गहराई और जीवन के हर पक्ष में उनके व्यापक प्रभाव को चेतना एवं विचार के स्तर पर ला खड़ा करता है। यही वैचारिकता की कमी-यही अचेतन जीवन—तो आज की सबसे बड़ी दुर्बलता है। जैन दर्शन की प्रासंगिकता इसमें है कि वह एक स्पष्ट आह्वान है कि चेतनता की इस दुर्बलता के प्रति हम सजग हों। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy