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________________ 184 Vaishali Institute Research Bulletin No.8 १५. जैन साहित्य और इतिहास (पं. नाथूरामजी प्रेम) पृ. ५२४-५२९ १६. देखें : (अ) जैन साहित्य का इतिहास द्वितीय भाग, (पं. कैलाशचन्दजी) चतुर्थ अध्याय पृ. २९४-२९९ (ब) जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश (पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार), पृ. सं. १२५-१४९ (स) तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा, भाग २, (डॉ. नेमिचन्दजी शास्त्री) (द) सर्वार्थसिद्ध-भूमिका, पं. फूलचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री, पृ. ३१-४६, (य) (पं. दरबारीलाल कोठिया) १७. देखें : सर्वार्थसिद्धि, सं. पं. फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ (१२५५, ९.८; पृ. ३१-३३, ३४, ४६, ५५-५६, ९५-६७, ८४-८५, ८८, १८. (अ) णाहं मग्गणठाणो णाहं गुणठाण जीवठाणो ण। कत्ता ण हि कारइदा अणुमंता णेव कत्तीणं ।। —नियमसार गाथा ७७, प्रकाशक-पंडित अजित प्रसाद, दि सेण्ट्रल __जैन पब्लिशिंग हाउस, लखनऊ, १९३१. (ब) णेव य जीवट्ठाणा ण गुणट्ठाणा य अस्थि जीवस्स। जेण टु एदे सव्वे पुग्गलदव्वस्स परिणामा ।। -समयसार, गा. ५५, प्रका. श्री म.ही. पाटनी दि. जैन पार. ट्रस्ट मारोठ (मारवाड़) ,१९५३ १९. सूक्ष्मसम्परायच्छद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश ॥१० ।। एकादश जिने ॥११॥ बादरसम्पराये सर्वे ॥१२ ॥ -तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ९, विवेचक पंसुखलालजी. २०. तदविरत देशविरत प्रमत्तसंयतानाम् ॥३५ ॥हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः ॥३६ ॥आज्ञाऽपायविपाकसंस्थानविचयाये । धर्ममप्रमत्तसंयतस्य ॥३७॥ उपशान्तक्षीणकषाययोश्च ॥३८॥ शुक्ले चाद्ये पूर्वविदः ॥ ३९ ॥ परे केवलिनः ॥४० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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