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________________ महावीर और बुद्ध के जीवन और उनकी चिन्तन-दृष्टि डॉ. सुरेन्द्रनाथ दीक्षित जैनधर्म और बौद्धधर्म एशिया के महान् धर्मों में हैं। दोनों ही धर्मों ने अपने गहन मानवीय चिन्तन से भारतीय धर्म-साधना को बहुत दूर तक प्रभावित किया है और सदियों तक विश्व के विशाल भू-भाग के निवासियों की सोच-समझ और जीवन-शैली को गढ़ा और सँवारा है। इन दोनों धर्मों ने एक धर्मं ने एक ऐसी मानवीय सभ्यता को इस धरती पर चरितार्थ किया, जिसका आदर्श अहिंसा, तप, त्याग, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और तृष्णा का क्षय रहा। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध अब से ढाई हजार वर्ष पहले हुए। यद्यपि उनसे पूर्व भी अनेक लोकोपकारी बोधिसत्त्वों की परिकल्पना की गई। उन्हीं की परिणति पूर्ण बुद्ध के रूप में हुई। उन्होंने पहले-पहल सारनाथ में धर्मचक्र का प्रवर्तन किया। यही बात जैन धर्म के बारे में नहीं कही जा सकती; क्योंकि वर्द्धमान महावीर जैनधर्म के मूल प्रवर्तक नहीं, अपितु वे चौबीसवें और अन्तिम तीर्थंकर थे। उनसे पूर्व पार्श्वनाथ तक तेईस तीर्थंकर हो चुके थे, जबकि गौतम बुद्ध से पूर्व बोधिसत्त्व हुए। आदिनाथ के रूप में भी प्रसिद्ध प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का उल्लेख श्रीमद्भागवत और विष्णुपुराण में मिलता है। अनेक जैन विद्वानों के अनुसार जैनधर्म न केवल बौद्ध धर्म की अपेक्षा कहीं अधिक प्राचीनतर है, अपितु वैदिकधर्म का यदि वह पूर्ववर्ती न हो, तो भी उसका पार्श्ववर्ती तो निश्चित रूप से है। जैन परम्परा के अनुसार जैनसंघ के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ महाभारत-काल में वर्तमान थे और कृष्ण के समकालीन और उसी यादव-वंश के थे। भारतीय धर्म-साधना और चिन्तन-यात्रा पर दृष्टि डालें तो यह साफ जाहिर होता है कि भारत के इस विशाल भू-भाग में वैदिक काल में भी भोगमूलक और त्यागमूलक संस्कृति में परस्पर विरोध और संघर्ष का भाव रहा है। दोनों ही जीवनदृष्टियों का प्रतिपादन ऋग्वेद से अथर्ववेद काल तक दिखाई देता है । यज्ञों में पशुओं और मनुष्यों की बलि तक की बात इतिहासकारों ने कही है और फिर भोग-त्याग पर बल देते हुए 'वेदवादरतो' की निन्दा भी की गई है। उपनिषद् और गीता का गहन ज्ञान उसी चिन्तन-सूत्र की व्याख्या करते हैं, जिसे जैनों ने 'साम्य' कहा। इस सन्दर्भ में यह भी * गनीपुर, मुजफ्फरपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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