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________________ जटासिंहनन्दी का 'वरांगचरित' और उसकी परम्परा प्रो. सागरमल जैन* जटासिंहनन्दी और उनके 'वरांगचरित' के दिगम्बर-परम्परा से भिन्न यापनीय अथवा कूर्चक - संघ से सम्बन्धित होने के कुछ प्रमाण उपलब्ध होते हैं । यद्यपि श्रीमती कुसुम पटोरिया के अनुसार वरांगचरितं में ऐसा कोई भी अन्तरंग साक्ष्य उपलब्ध नहीं है', जिससे जटासिंहनन्दी और उनके ग्रन्थ को यापनीय कहा जा सके, किन्तु मेरी दृष्टि में श्रीमती कुसुम पटोरिया का यह कथन समुचित नहीं है । सम्भवतः उन्होंने मूल ग्रन्थ को देखने का प्रयत्न ही नहीं किया और द्वितीयक स्रोतों से उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर ऐसा मानस बना लिया। मैंने यथासम्भव मूल ग्रन्थ को देखने का प्रयास किया है और उसमें मुझे ऐसे अनेक तत्त्व मिले हैं, जिनके आधार पर वरांगचरित और उसके कर्ता जटिलमुनि या जटासिंहनन्दी को दिगम्बर - परम्परा से इतर यापनीय अथवा कूर्चक - परम्परा से सम्बद्ध माना जा सकता है। इस विवेचन में सर्वप्रथम तो मैं श्रीमती कुसुम पटोरिया के द्वारा प्रस्तुत उन बाह्य साक्ष्यों की चर्चा करूँगा, जिनके आधार पर जटासिंहनन्दी यापनीय होने की सम्भावना को पुष्ट किया जाता है। उसके पश्चात् मूलग्रन्थ में मुझे दिगम्बर मान्यताओं से भिन्न, जो तथ्य उपलब्ध हुए हैं, उनकी चर्चा करके यह दिखाने का प्रयत्न करूँगा कि जटासिंहनन्दी यापनीय अथवा कूर्चक - परम्परा में से किसी एक से सम्बद्ध रहे होंगे । जटासिंहनन्दी यापनीय-संघ से सम्बन्धित थे या कूर्चक - संघ से, इस सम्बन्ध में तो अभी और भी सूक्ष्म अध्ययन की आवश्यकता है, किन्तु इतना निश्चित है कि वे दिगम्बर - परम्परा से भिन्न अन्य किसी परम्परा से सम्बन्धित हैं; क्योंकि उनकी अनेक मान्यताएँ वर्तमान दिगम्बर- परम्परा के विरोध में जाती हैं । हम यहाँ इन्हीं तथ्यों की समीक्षा करें : (१) जिनसेन प्रथम (पुन्नाटसंघीय) ने अपने हरिवंशपुराण (ई. सन् ७८३) में, जिनसेन द्वितीय (पंचस्तूपान्वयी) ने अपने आदिपुराण में, उद्योतनसूरि (वे. आचार्य) ने अपनी कुवलयमाला (ई. सन् ७७८) में. ४ रायमल्ल ने अपने कन्नड़ गद्य-ग्रन्थ त्रिषष्ठिशलाकापुरुष (ई. सन् ९७४-८४) में, धवल कवि ने अपभ्रंश भाषा में रचित अपने * निदेशक, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी- २२१००५ (उ. प्र.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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