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________________ समाज व्यवस्था में अनेकान्त 457 अस्तित्व की बात कही जा रही है। वह अनेकांत का ही सिद्धान्त है। जीवन की विभिन्न प्रणालियों में सह-अस्तित्व आवश्यक है। एक पूंजीवादी विचारधारा है एक साम्यवादी है, एक एकतंत्र की प्रणाली है एक लोकतंत्र की प्रणाली है। दोनों संसार में चल रही हैं और परस्पर विरोधी भी हैं। यदि इस भाषा में सोचा जाये कि दोनों में से एक रहेगा तो युद्ध के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रहेगा किन्तु आज एक ही संसद में अनेक विरोधी विचार वाले बैठते हैं। उनका अह-अस्तित्व है। यह अनेकान्त की ही अवधारणा है। शिक्षा जगत् में अनेकान्त शिक्षा बिम्ब है, समाज उसका प्रतिबिम्ब है। समाज को बदलने का एक महत्त्वपूर्ण साधन बनती है शिक्षा। शिक्षा के द्वारा विद्यार्थी में बीज वपन होता है। शिक्षा हितकारी, कार्यकारी होगी तो समाज भी बदलेगा। स्वामी विवेकानन्द एवं महात्मा गांधी ने भी शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण माना है। आज की शिक्षा अपने इस उद्देश्य की सम्पूर्ति में असहाय एवं अक्षम है। आज शिक्षा के द्वारा व्यक्ति की शारीरिक एवं बौद्धिक विकास तो बहुत किया जा रहा है किन्तु मानसिक एवं भावनात्मक विकास के पक्ष को सर्वथा उपेक्षित कर दिया गया है। शिक्षा मूल्यविहीन हो गई है। स्वयं मार्ग से अन्जान दूसरे का मार्गदर्शक नहीं बन सकता। आज शिक्षा की वैसी ही स्थिति बन रही है। अंधा आंख वाले को रास्ता बता रहा है। आज की शिक्षा में मूल्य प्रशिक्षण का उपक्रम आवश्यक है। आज का जीवन मूल्यों से विपरीत दिशा में जा रहा है। झूठ मत बोलो, झगड़ा मत करो, पढ़ाया जा रहा किंतु वातावरण में इससे विपरीत हो रहा है। जीवन विज्ञान की शिक्षा पद्धति सर्वाङ्गीण व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया है। आज की शिक्षा में शारीरिक बौद्धिक विकास के सूत्रों को अनेकान्त नकारता नहीं है किन्तु उसका दर्शन है इसके साथ मानसिक एवं भावनात्मक मूल्यों को जोड़ा जाये। वर्ण-व्यवस्था में अनेकान्त ___ वर्ण-व्यवस्था भारतीय समाज की स्वीकृत सच्चाई है। आज इसका विकृत रूप हमारे सामने है। जन्मना जाति की व्यवस्था ने ऊँच-नीच और छुआछूत की समस्या पैदा की। इस समस्या के द्वारा कितने अग्नि-काण्ड हो चुके हैं। कितने निर्दोष बेगुनाह मौत की होली में जल चुके हैं। अनेकान्त के अनुसार वर्ण-व्यवस्था गलत नहीं है। वर्ण-व्यवस्था तो समाज के श्रम का विभाजन है। आर्थिक क्षेत्र में जैसे divison of labour होता है। श्रमविभाजन की दृष्टि से यह व्यवस्था उचित है किन्तु जन्म के साथ जाति व्यवस्था को जोड़कर भयंकर अनर्थ हुआ। अनेकान्त के अनुसार जन्म से नहीं कर्म से जाति व्यवस्था हो। मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है। उत्तराध्ययन का उद्घोष है - कर्म से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि होते हैं। जाति तात्त्विक नहीं है किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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