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________________ अनेकान्तवाद : एक दार्शनिक विश्लेषण 413 अपने को गलती पर पाने की अवस्था में मुझे पहले की अपेक्षा कम लज्जित होना पड़ता, और जब मेरी बात ठीक होती तो दूसरों को अपनी गलतियाँ छोड़कर मेरे साथ मिल जाने के लिए प्रेरणा करना मेरे लिए सरल होता। अत: अनेकान्तवाद दूसरे की सम्मतियों का सम्मान करना सिखाता है। शिक्षा मनोविज्ञान में अनेकान्तवाद का प्रयोग कोई समय था, जब छात्रों को प्राय: एक जैसी ही शिक्षा दी जाती थी। आज मनुष्य के सोचने समझने का ढंग बदल गया है। एक ही वातावरण और गुरु के विद्यमान रहते हुए आवश्यक नहीं की प्रत्येक छात्र की रुचि एक जैसी ही हो। शिक्षा मनोविज्ञान में प्रत्येक छात्र की रुचि को ध्यान में रखते हुए उसे कौन सी शिक्षा दी जाय और कैसे दी जाय, इस विषय पर ऊहापोह किया जाता है, अर्थात् अनेकान्तिक दृष्टि से दूसरे के दृष्टिकोण समझने और अपना दृष्टिकोण समझाने का ध्यान रखा जाता है। संस्कृति को समझने के लिए शिक्षकों द्वारा छात्रों को समझने की आवश्यकता है। उन्हें छात्रों के पथप्रदर्शकों के रूप में अपने को समझने की आवश्यकता है। एतदर्थ शिक्षकों को अपने शिक्षण में उन मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करने के लिए तैयार रहना चाहिए जो सफल शिक्षण और प्रभावशाली अधिगम के लिए अनिवार्य है। शिक्षा मनोविज्ञान में अनेकान्तिक दृष्टि के प्रयोग से अध्यापक अपने स्वभाव, बुद्धि, स्तर, व्यवहार, योग्यता आदि का ज्ञान प्राप्त करता है। यह ज्ञान उसे अपने शिक्षण कार्य में सफल बनाने में योग देता है। इससे वह बालकों की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि विशेषताओं से परिचित हो जाता है। वह इन विशेषताओं को ध्यान में रखकर विभिन्न अवस्थाओं के बालकों के लिए पाठ्य विषयों और क्रियाओं का चुनाव करने में सफलता प्राप्त करता है। इससे बालकों का चरित्र निर्माण होता है। अध्यापक अनेकान्तिक दृष्टि के प्रयोग से प्रत्येक छात्र की आवश्यकताओं के बारे में बहुत कुछ सीख सकता है। मनोविज्ञान के खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि बालकों की रुचियों,योग्यताओं तथा क्षमताओं आदि में अन्तर होता है। अत: ऐसा कठिन रुख अपनाने से काम नहीं चलता। शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य बालकों के चरित्र का निर्माण करना, उनके व्यक्तित्व का विकास करना है। जो शिक्षक अपने छात्रों की रुचि के अनुसार शिक्षा देते हैं उनके सामने अनुशासन की कठिनाइयाँ बहुत कम आती हैं। मनोवैज्ञानिक शिक्षा पद्धति की मुख्य विशेषताएँ हैं- विश्वसनीयता, यथार्थता, विशुद्धता, वस्तुनिष्ठता और निष्पक्षता। इससे अध्ययन की अनेक विधियों का विकास हुआ है जो इस प्रकार हैं(अ) आत्मनिष्ठ विधियाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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