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________________ 380 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda माध्यम से परमतत्व प्रकाशित होता है वही सन्दर है। सुन्दर वस्तु स्वयं ही हमारी इंद्रियों एवं मस्तिष्क को आकर्षित कर लेती है।" प्रकृति भी अनन्य सौंदर्य का माध्यम बनकर अग्रसर हो सकती है जबकि उसकी उपलब्धि कला में हो। वैसे ही कलागत सौंदर्य में भी परमतत्त्व की सत्ता होती है- इस प्रकार हीगल का कहना वस्तुत: अनेकांतवाद का समर्थन ही है। ग्रीक दार्शनिक सुकरात ने कहा - "एक गोबर से भरी टोकरी भी सुन्दर हो सकती है अगर उसकी कोई उपयोगिता हो। उपयोग की रहितता से सोने से चमकनेवाली तलवार भी असुन्दर मानी जाएगी। इसप्रकार से सौंदर्य के सामाजिक उपयोग का दृष्टिकोण मुख्य बन गया। एडमंड बर्क नामक चितंक ने तो सौंदर्य को पूर्णतया सामाजिक गुण माना। कांट नामक पाश्चात्य चिन्तक ने कहा कि स्वच्छंद कल्पना के द्वारा प्रस्तुत वह विचार जो हमें अधिक चिंतन की ओर प्रेरित करता है. वही सौंदर्य है। किसी भी स्कूल में अगर कोई कुरूपी अध्यापिका हो, मगर अपनी बुद्धि शक्ति एवं अध्यापन शक्ति से छात्रों को आकर्षित करती हो तो उस स्कूल के विद्यार्थियों की दृष्टि में वही सबसे सुन्दर लगेगी। परंतु कुछ चिन्तकों ने सौंदर्य को बुद्धि, विचार, चिन्तन, या सत्य एवं आदर्शों के प्रतिरूप के रूप में ग्रहण किया। सेंट थामस ने “ऐनिक माध्यम की अपेक्षा तर्क की अभिव्यक्ति को ही श्रेष्ठ सौंदर्य कहा।" अत: कहा गया कि सौंदर्य अनेकों विचारों का मिश्रण है जो कि मिश्रित ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। उपर्युक्त सभी व्याख्यात्मक प्रयत्नों में आंशिक सत्य ही विद्यमान है, अनेकांतवाद के सिद्धांत की रोशनी में हम इन सबका विश्लेषण करके परस्पर समन्वय करेंगे- तभी व्यापक सौंदर्य सत्य की उपलब्धि हो सकती है। मानसिक तनाव के व्यवस्थापन के क्षेत्र में ___'स्वस्थ मन के रहने पर ही शरीर का स्वास्थ्य संभव है। यह आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान के अतिविशेषज्ञों (Super Specialists) का कथन है। के० एम० मेडिकल कालेज के डीन एवं ब्रिटिश मेडिकल कौंसिल के सदस्य डा० बी० एम० हेगडे जी कहते हैं- "आजकल की अनेकों व्याधियों का मूल कारण मानसिक तनाव है। जबतक इन मानसिक तनावों का नियंत्रण नहीं कर पाते तब तक पूर्ण स्वास्थ्य लाभ नहीं हो सकता। वास्तव में हृदय स्तंभन (हार्ट अटैक) का तो मुख्य कारण मानसिक तनाव ही है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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