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________________ अनेकान्तवाद की प्रासंगिकता 379 सर्वोदयवाद 'अनेकांतवाद' के आदर्शों पर निरूपित है। इसमें संसार की विषमता, प्रतिस्पर्धा, विद्वेष को दूर करने की क्षमता भी विद्यमान है। अत: अनेक विचारक इसी से विश्व की समस्याओं का समाधान देखते हैं। भारतीय प्राचीन आर्ष परंपरा के 'अनेकान्तवाद' की आर्थिक नीति और वाणिज्य नीति का आधार अहिंसा एवं प्रेम है। भौतिकवाद व अध्यात्मवाद, पूँजीवाद व साम्यवाद का समन्वय इसके मूल में है। भारतीय संस्कृति अपने को सभी परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने की क्षमता रखती है। विविध युगों में उसने कभी कर्म प्रधान, कभी ज्ञान प्रधान, और कभी भक्ति प्रधान रूप धारण किया। मोहनजोदड़ो संस्कृति के काल से लेकर, तीर्थंकर भगवान श्री महावीर तक और अब स्व० आचार्य तुलसी या एलाचार्य विद्यानंद मुनि महाराज तक हमारी संस्कृति के मूल में अनेकान्तवाद की प्रेरणा होने के कारण-इतनी विशाल सहिष्णुता का समावेश हुआ और हो रहा है। हमारी भारतीय संस्कृति की पृष्ठभूमि में विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि हमारे देश में आर्थिक क्षेत्र व वाणिज्य क्षेत्र में सहिष्णुता का जो भाव है उसके मूल में अनेकांतवाद का ही अनुष्ठान विद्यमान है। __ वाणिज्य क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा व प्रतियोगिता में कार्यरत व्यापारी लोग भी एक संघ की छत्रछाया में संगठित होकर, समाज कल्याण और आत्मकल्याण के कार्यों में प्रचीन काल से अर्वाचीन काल तक कार्यरत हैं। महात्मा गांधी स्वयं वैश्य कुल में पैदा हुए थे, वे बनियाँ थे, उन्होंने 'अनेकांतवाद' से प्रेरणा पाकर सारे भारत के आर्थिक एवं वाणिज्य क्षेत्र को इस प्रकार की प्रेरणा दी कि गांधीजी को भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में या हरिजनोद्धार, खादीप्रचार, हिन्दी प्रचार, ग्रामोद्धार आदि कार्यों के लिए उन्हें सर्वदा आर्थिक सहयोग प्राप्त होता रहा। सौंदर्य का क्षेत्र एवं अनेकान्तवाद इंद्रिय बोध संबंधी शास्त्र को सौंदर्य शास्त्र (Asthetics) कहते हैं। सौन्दर्यशास्त्र के विशेषज्ञों के अभिमत में सौंदर्य तो अस्पष्ट, अनिश्चित, धुंधला होता है। सौंदर्यशास्त्र फिर भी भौतिक आकर्षण पर निहित है। सौंदर्यशास्त्र के चिंतकों ने प्रकृति एवं कलाओं के माध्यम से बाह्यजगत् के संवेदित रूप का अध्ययन किया। प्लेटो ने विश्व के समस्त सौंदर्य को ईश्वर का रूप बताते हुए सौंदर्यानुभूति को आध्यात्मिक-साधना का एक रूप माना था। यह सौंदर्य तर्कगम्य नहीं अनुभूतिगम्य है। जार्ज फ्रेडरिक विन्हेम हीगल नामक सौंदर्यचिन्तक ने कहा “जिस ऐंद्रिक वस्तु के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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