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________________ 370 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda इस विश्व परंपरा की महान सत्ता में निश्चय हमें प्राप्त होगा बशर्ते कि हम उसे अपने ज्ञान की परिधि में समेंट लें। किन्तु पूर्ण सत्य का ज्ञान हो कैसे। संकुचित मत, वाद, दायरे, सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, राजनैतिक एवं सांप्रदायिक सीमाओं को लांघने पर ही पूर्ण सत्य का दर्शन संभव है। अनेकांतवाद-सिद्धांत व तात्पर्य इस संसार में विभिन्न महाद्वीपों में स्थित विभिन्न देशों में विविध धर्मों के अनुयायी विद्यमान हैं। प्रभु ईशा मसीह द्वारा प्ररूपित ईसाई धर्म है। मुहम्मद पैगंबर से प्रसारित इस्लाम धर्म है। गौतम बुद्ध द्वारा प्रतिष्ठापित बौद्ध धर्म है। भारत में सनातन वैदिकता की पृष्ठभूमि में पनपने वाला हिन्दू धर्म है। इन सभी धर्मों के अनुयायी अपने-अपने धर्मों के कट्टर अनुयायी हैं। इन सभी धर्मावलंबियों की विशेषता यह है कि उन धर्मों के धर्मशास्त्रों/ग्रंथों ने एक हजार या ढाई हजार वर्ष पूर्व जो कुछ कहा है अथवा लिखा है वह आधुनिक वैज्ञानिक युग की रोशनी में शत प्रतिशत असत्य ही क्यों न साबित हो, परंतु वे कट्टर धर्मावलंबी अपनी आखें मूंदकर उन्हें स्वीकार कर लेंगे। सत्य के एक ही अंग को, अथवा सत्य के एक ही पहलू को देखकर यह फैसला करना कि सत्य केवल वही है जो हमारे गुरु ने, अथवा स्थापकों ने देखा हैतो यह सत्य का एकांत स्वरूप है। दूसरे शब्दों में पाँच अंधों के द्वारा हाथी के विभिन्न अंगों को स्पर्श करके हाथी के स्वरूप के उनके अपूर्ण निष्कर्ष के समान है। कोई भी ज्ञातव्य वस्तु के बारे में अगर निष्कर्ष लेना है तो उस वस्तु की अवस्था, धर्म, गुण, आकार, रंग, गंध- आदि अनेक आयामों के बारे में ध्यान देना होगा। शीघ्रता में लिया गया निर्णय अनुचित भी हो सकता है अथवा आंशिक सत्य भी हो सकता है। वस्तु अनन्त धर्मात्मक है। अत: वस्तु अनेकांत स्वरूपी है। उस वस्तु में भिन्न-भिन्न धर्म एवं लक्षण हो सकते हैं। यदि हर वस्तु के एक ही धर्म एवं लक्षण को ग्रहण करेंगे तो वह उसका एकान्त एवं अपूर्णज्ञान होगा। ज्ञातव्य द्रव्यों या वस्तुओं के अप्रधान एवं प्रधान गुण-भावों का तुलनात्मक दृष्टिकोण से विश्लेषण करके वस्तुओं का परिपूर्ण ज्ञान प्राप्त करना ही इस अनेकांतवाद का मूल रहस्य है। एकांतवाद का विरोध एवं अनेकान्तवाद का प्रतिष्ठापन सर्वप्रथम तीर्थंकर भगवान ने किया। उन्होंने अपने जीवनकाल में तपस्याचरण के बाद जो केवल ज्ञान प्राप्त किया उसकी रोशनी में सारे विश्व के विभिन्न तत्त्व, सत्व, एवं आदर्श का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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