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________________ सप्तभंगी बहुमूल्यात्मक तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में 363 मूल्यात्मक ही सिद्ध किया किया है।११ किन्तु, जी० बी० बर्च का यह मत मान्य नहीं है। उन्हें सप्तभंङ्गी में सप्तमूल्यात्मकता ही दृष्टिगत होती है। उन्होंने इस सप्तमूल्यात्मकता की सिद्धि हेतु एक दूसरा दृष्टान्त प्रस्तुत किया है - "क्या लिंकन दासों को मुक्त किया था ? इस प्रश्न को लेकर इसका उत्तर प्रो० बर्च ने सप्तभङ्गी के आधार पर देने का प्रयत्न किया है। "कथंचित् उसने दासों को मुक्त किया था, क्योंकि उसने उनकी मुक्ति के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। कथंचित् वे नहीं किये थे, क्योंकि तेरहवें संशोधन के अनुसार वे कानूनन मुक्त हुये थे। कथंचित् यह अनिश्चित है, यदि आप इन दोनों घटनाओं पर एक साथ विचार करें। कथंचित् वह किया था और नहीं किया था, यदि आप दोनों घटनाओं पर क्रमश: विचार करें जैसे एक इतिहास में लिखा जाता है। कथंचित् वह किया था और यह अनिश्चित है, यदि आप घोषणा और उसके परिणाम पर वार्तालाप करें। कथंचित् वह नहीं किया था और यह अवक्तव्य है यदि आप दासों के प्रारम्भिक स्थिति के आधार पर संशोधन का संदर्भ के साथ विचार करें। कथंचित् वह किया था और नहीं किया था और यह अनिश्चित है यदि आप घोषणा और इसकी सांवैधानिक कार्यवाही और दासों पर पड़ने वाले तात्कालिक प्रभाव पर एक संक्षिप्त टीका करें। संदर्भ पर निर्भर होने से इनमें से प्रत्येक कथन सत्य है लेकिन इनमें कोई भी सत्य नहीं हो सकता यदि कही हुई शर्त को अलग कर दिया जाय। सामान्य विचार इसे कभी भी उपेक्षित नहीं कर सकता। जबकि निम्न कोटि का तर्कशास्त्र यह कहता है कि या तो वह मुक्त किया था या नही किया था।१२ इस प्रकार एक-एक शर्त को सप्तभङ्गी के प्रत्येक भंग में जोड़कर प्रो० बर्च ने सप्तभंगी की सप्तमूल्यता को निर्धारित किया है। वैसे यह कहना ठीक भी है, क्योंकि जैन सप्तभङ्गी को सप्त मूल्यता को निर्धारित किया है। वैसे यह कहना ठीक भी है, क्योंकि जैन सप्तभङ्गी भी अपनी सप्तभङ्गिता किसी शर्त के आधार पर ही सिद्ध करती है। वह भी कथन की पूर्णत: निरपेक्षता का समर्थन नहीं करती है। यही कारण है कि वह प्रत्येक कथन के साथ सापेक्षता का सूचक स्यात् पद को जोड़ देती है। जो भी हो, सप्तभङ्गी सप्तमूल्यात्मक है; इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। संदर्भ१. तत्त्वार्थराजवार्तिक - १६/५ २. पंचास्तिकाय/तात्पर्यवृत्ति, श्लो०-१४ ३. सप्तभंगीतरंगिणी-पृ०-१ ४. सप्तभंगी तत्त्वप्रदीपप्रकरणम् -१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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