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________________ Multi-dimensional Application of Anekāntavāda बन्धनों के कारण बनती जा रही हैं। जिस स्वतन्त्रता में सांस ले रहे हैं, वह सांस कब किसके द्वारा रोक दी जाए इसकी प्रतीति होते हुए परमाणु को हाथ का खिलौना बनाने में चूक नहीं कर रहे हैं। यदि वह खिलौना टूटेगा तो सर्वनाश होगा। ऐसे में समता रूप अनेकान्त का जीवन दर्शन अत्यन्त उपयोगी है। 272 इसकी अनन्त शक्ति है, इसके अनन्त आधार हैं, और इसकी अनन्त अक्षय, अनुपम, अजेय, अपरिमित शक्ति है। यह अनेकधर्मात्मक है। इसका व्यक्ति विशेष, समाज विशेष, छोट-बड़े, अल्प-संख्यक - बहुसंख्यक, सवर्ण-अवर्ण, ब्राह्मण-क्षत्रिय, वैश्य - शूद्र आदि से कोई लेना-देना नहीं है । आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक आदि सभी क्षेत्रों में यह कारगर है। इसकी मापक शक्ति अनन्त को भी पार करने वाली है । इसकी स्वस्थ प्रणाली जीवंत है, साकार है । कृत्रिम विषमता, अराजकता इसकी छवि पड़ते ही घुटने टेक लेगें। तब मानव समाज स्वस्थ वातावरण में सांस लेकर कह सकेगा"नाइवाएज्ज के च णं ।" यह अतिपात, अत्याचार या प्रदूषण किसके लिए । आचार-विचार की स्थिरता समाज की जागृति प्रगति के लिए आचारर-विचार की शुद्धता एवं स्थिरता आवश्यक है। सामान्य रूप में यही मानव-जीवन की उत्कृष्टता है और यही उत्थान का समीकरण है। जहाँ जीवन के विविध उद्देश्य हैं, पारस्परिक समन्वित दृष्टिकोण है, वहाँ स्वार्थ एवं असहयोग की फैलती जड़ें समाज को बाधाएं भी उत्पन्न नहीं कर सकती हैं । समभाव और सद्भाव की जागृति से आचार-विचार पवित्र होंगे। आसक्ति, मूर्छा, लोलुपता का पतन होगा, संघर्ष का कारण जन्म ही नहीं ले पाएगा। संघर्ष की समाप्ति, समाज की जागृति में है । "तमे णामं एगे जोइ, जोइ णाम एगे तमे १९८ | " अन्धकार के नाश के लिए एक ज्योति रूपी सूर्य भी पर्याप्त है और कभी ज्योति स्वरूप, तेजस्वी सूर्य पर ग्रहण लगते ही अन्धकार छा जाता है या मेघ सूर्य के प्रकाश को ढक देते हैं। संकिलेसकरं ठाणं दूरओ परिवज्जए क्लेश और संघर्ष का जन्म अहंकार में है । स्वार्थ में अपवित्रता एवं विचारों के विरोध में है। जहाँ संक्लेश को उत्पन्न करने वाला स्थान नहीं है, वहाँ दुराग्रह, दुर्भावना, दुर्वचन, दुष्प्रवृत्ति, दुराचार आदि स्थान न ही बना पाते, और न ही स्वभाव में विषमता का जहर घोलने में समर्थ हो पाते। 'पियंकरेपियंवाई' अर्थात् वहाँ प्रीति अपना स्थान बनाती है। अनेकान्तवाद की दृष्टि में जहाँ समग्रता का आलोक है वहाँ अनासक्ति है, अमूर्छा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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