SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त: स्वरूप और विश्लेषण 271 कैसी स्वार्थलोलुपता है। अनेकान्तवाद के मूल सिद्धान्त समन्वयवाद और सहअस्तित्ववाद पर अमल किया जाय तो युद्ध के सम्भावित खतरों से बचा जा सकता है। क्योंकि मानव का स्वभाव शांति प्रिय है। कम्मुणा उवाही जायइ ११७ कर्म से उपाधियों का जन्म होता है। जब व्यक्ति जन्म लेता है, तब कोई उपाधि नहीं होती है। कोई नाम नहीं होता है, कोई व्यवसाय नहीं होता है और न ही उसका कोई धर्म होता है। व्यक्ति अपने आपको नेता कहता हुआ विविध कर्म की उपाधियों से अलंकृत करके मानव-मानव में ईर्ष्या, घृणा आदि की भावना पैदा करने लगता है, वैमनस्य बढ़ाता है। मानव अपनी मानवीयता को भूलकर मैं ब्राह्मण हूँ, मैं श्रेष्ठ हूँ, मैं क्षत्रिय हूँ, मेरे पूर्वजों का आधिपत्य प्रारम्भ से ही रहा है आदि। वर्ग एवं वर्ण-भेद क्रियाशील बन जाता है। कालेगोरों का भेद भी नाक-भौं सिकोड़ने लगता है। समाज का एक सबसे बड़ा विघटनकारी रूप हमारे सामने तब आता है, जब वर्ग में भी वर्ग, वर्ण में भी वर्ण, राज्य, राष्ट्र, देश कुटुम्ब आदि के रूप में खड़ा हो जाता है। समाज की गतिशून्यता व्यक्तियों को भी विभाजित कर देती है। (i) भौतिकवादी (ii) काम-पिपासु (iii) पद-अभिलाषी (iv) देशद्रोही (v) अलगाववादी (vi) आतंकवादी (vii) नक्सलवादी आदि वर्ग हमारे द्वारा ही बनाए गए हैं। हमारे ही व्यक्ति संज्ञा दे देते हैं।' सवर्ण-अवर्ण, जनजाति-अनुसूचित जाति आदि के वर्गीकरण की आवश्यकता ही क्या थी। यदि कोई कमजोर है, या कोई गरीब है, असहाय है, तो उसका विकास देश का या राष्ट्र का प्रमुख कर्त्तव्य है। चाहे वह किसी वर्ग या जाति का क्यों न हो, उन्हें उठाए, उन्हें जागृत करे। ऐसी जागृति भी न हो कि संघर्ष छिड़ जाए। आज हमें इस बात का ध्यान रखना है कि भ्रष्टाचार जन्म न ले, पक्षपात भी फलीभूत न हो सके, भाई-भतीजावाद अपने पैर न पसार सके। समता-अनेकान्तवाद का जीवनदर्शन विषम विचारों, विषम वृत्तियों, विषम परिस्थितियों, विषम रक्त संहार आदि का विषाक्त एवं दूषित भाव सर्वव्यापी बनकर समस्त वातावरण को ही प्रदूषित कर रहा है। वह मानव हृदय के भीतरी परतों को प्रदूषित करता हुआ सौजन्यता और सहदया को समाप्त करता जा रहा है। परिवार, समाज, देश और समूचा विश्व ही विषमता में जकड़ता जा रहा है। आनंद एवं उमंग के क्षणों पर काले बादलों की तह छाती जा रही है। स्नेह, सहिष्णुता पर प्रश्नचिह्न लग चुका हैं? यह बदलाव, बिखराव आराजकता को जन्म देने में भी चूक नहीं करेगा। जिन परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़े थे, वे खुलकर भी प्रगाढ़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy