SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 457
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 70 ... जैन साहित्य समारोह - गुच्छ २ रहे हैं, दुश्मन की सेना अग्निवाण वर्षा रही है ऐसे समय पर आपका चरण-सेबा आपकी अनुकंपा से विजय प्राप्त करता है ।1 आपकी भक्ति की ही यह महिमा है कि विकराल मगरों, भीमकाय मत्स्यों से युक्त, वडवानल से जलते तूफानी समुद्र को भी, आपका भक्त सरलता से निर्विघ्न पार कर लेता है । इस प्रकार प्राकृतिक बाह्य व्याधियों के साथ हे नाथ ! आपका स्वतन शारीरिक पीड़ाओं का भी हरणकर्ता है। जलोधर रोग से पीड़ित मनुष्य जिसकी कमर टेढी पड़ गई है, जिसकी दशा सोचनीय है, जिसके जीने की आशा छुट गई है, उनके शरीर पर यदि आपकी भभूत (चरणरज) लगा दी जाये तो वह रोगमुक्त होकर कंचन काया प्राप्त कर लेता है। अर्थात् सांसारिक रोगों से उसे मुक्ति मिलती है। यह भगवान के नामस्मरण का ही चमत्कार है कि लौहशृंखला में जकड़ा हुआ व्यक्ति, जिसका शरीर रगड़ के कारण छिल गया है, जो बन्दीगृह में परवश है - वह भी स्वयमेव मुक्त हो जाता है। तात्पर्य कि जिनेन्द्रदेव के नामस्मरण, कीर्तन की ही यह महिमा है कि भक्त संसार के सभी दुखों और भयों से छुटकारा पाकर मुक्तिलक्ष्मी का स्वामी बनता है...उसे लौकिक सम्पदायें प्राप्त होती सी हैं-वह मोक्षलक्ष्मी का अनन्त सुख प्राप्त कर लेता है। कृतिकार की विनम्रता : भक्ति का और विशेषकर दास्यभक्ति का यह लक्षण है कि भक्त भगवान को सदैव श्रेष्ठ मानकर अपनी लघुता प्रकट करता है । स्वयं की निर्बल-अल्पबुद्धि मानते हुए स्तवन में लीन हो जाते हैं। यह सत्य भी है कि जब तक अहम् का तिरोहण न होगा - भक्ति की ही न जा सकेगी... उसमें ओत-प्रोत नहीं हुआ जा सकेगा। आचार्य 1. (४२-४३) 2. श्लोक (४४), 3. (४५), 4. (४८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014002
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages471
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy