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________________ जैन दर्शन में नारी भावना है और साधिका स्वरूप की वन्दना - स्तवना । 'अन्तकृत दशांग सूत्र में मगध के सम्राट श्रेणिक की महाकाली, सुकाली आदि दस महारानियों का वर्णन है, जिन्होंने श्रमण भगवान महावीर के उपदेश से प्रतिबोध पाकर साधना -पथ स्वीकार किया । जो महारानियों राजप्रसादों में रहकर विभिन्न प्रकार के रत्नों के हार एवं आभूषणों से अपने शरीर को विभूषित करती थीं, वे जब साधनापथ पर बढ़ी तो कनकावली, रत्नावली आदि विविध प्रकार की तपश्चर्या के हारों को धारण करके अपनी आत्मज्योति चमकाने लगीं । जननी, पत्नी, भगिनी, पुत्रीरूप में नारी सदैव पुरुषों की प्रेरणा रही है । 'उत्तराध्ययन सूत्र' के १४ वें 'ईषुकारीय' अध्ययन में भृगु पुरोहित का वर्णन आता है । भृगु पुरोहित अपने दो पुत्रों के वैराग्य से प्रभावित होकर अपनी पत्नी यशा के साथ दीक्षा लेता है । तब इषुकार राजा ने उसकी सम्पदा को अपने भंडार में लाकर जमा कराने की आज्ञा दी । जब महारानी कमलावती को इस बात का पता चला तो उसने राजदरबार में उपस्थित होकर राजा की धनलिप्सा एवं मोहनिद्रा को भंग किया और उसे प्रतिबोध देकर साधनापथ का पथिक बनाया । रानी के ये शब्द कितने प्रेरक और मर्मस्पर्शी हैं सव्वं जग जर तुहं, सव्वं सव्वं वि ते अपज्जन्तं, णेव वावि घणं भवे । ताणाय तं तव ।। Jain Education International 'उत्तराध्ययन' १४ / ३९ हे राजन् ! यदि यह सारा जगत तुम्हारा हो जाय अथवा ससार का सारा धन तुम्हारा हो जाय तो भी ये सब तुम्हारे लिये अपर्याप्त है । यह धन जन्ममृत्यु के कष्टों से तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकता है । 51 - तपस्या में लीन बाहुबली के अभिमान को चूर करनेवाली उनकी बहिनें भगवान ऋषभदेव की दो पुत्रियाँ ब्राह्मी और सुन्दरी ही For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014002
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages471
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size19 MB
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