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________________ 50 जैन साहित्य समारोह - गुच्छ २ करुणा का भाव भी था। राजपरिवार में दासियों का जीवन अत्यन्त दयनीय था। गाजर-मूली की तरह उनका क्रय-विक्रय होता था। उन पर भांति-भांति के अत्याचार होते थे। महावीर को यह सब पसन्द नहीं था । श्रेणिक के पुत्र मेघकुमार की सेवा-सुश्रूषा के लिये नाना देशों से दासियों का क्रय किया गया तो उन्होंने अपनी धर्मसभाओं में इसका खुलकर विरोध किया । परिणामस्वरूप उन्हें कई कठोर व उग्र उपसर्ग दिये गये। पर महावीर ने सबको समभावपूर्वक सहन किया । महावीर ने साध्वी संघ की स्थापना की तो उसमें राजघरानों की महिलाओं के साथ दासियों, गणिकाओं और वैश्याओं को भी पूरे सम्मान के साथ दीक्षा देने का विधान रखा और उन्हें दीक्षित किया । समत्व के प्रहरी महावीर ने निर्भयतापूर्वक नारीजागरण का बिगुल बजाया। तुच्छ से तुच्छ व अबोध समझी जाने वाली अबलाओं में भी उन्होंने उच्च एवं महान सबल भवानाओं को प्रतिष्ठित किया। मध्ययुग में मुसलमानों के आक्रमणों के समय जब राजपूत युद्ध में मारे जाते तो उनकी स्त्रियाँ उनके साथ चिता में जलकर सती हो जाती । सतीप्रथा के पीछे शायद स्त्रियों के मन की यह भय-भावना ही मुख्य कारण थी कि वे अपने शील की रक्षा जीवित रहकर नहीं कर सकेंगी। पर जैन दर्शन में भय के कारण इस प्रकार के मृत्युवरण का निषेध किया गया है। यहां सती का आदर्श पातिव्रत धर्म के सम्यक् निर्वाह और ब्रह्मचर्यपालन के लिये हर संभव कष्ट उठाने में माना गया है। नारी के विविध रूप जैन दर्शन और साहित्य में नारी के विविध रूपों का चित्रण हुआ है। यहाँ नारी के भोग्या स्वरूप की सर्वत्र भार्सना की गई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014002
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages471
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size19 MB
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