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________________ जैन मुनियों के नामान्त पद या नन्दियाँ 11 पद सोमचारित्र कृत 'गुरुगुणरत्नाकर' काव्य के द्वितीय सर्ग में इस प्रकार लिखे हैं : १ तिलक, २ विवेक, ३. रुचि, ४ राज, ५ सहज, ६ भूषण, ७ कल्याण, ८ श्रुत, ९ शीति, १० प्रीति, ११ मूर्ति, १२ प्रमोद, १३ आनंद, १४ नन्दि, १५ साधु, १६ रत्न, १७ मंडण, १८ नंदन, १९, वर्द्धन, २० ज्ञान, २१ दर्शन, २२ प्रभ, २३ लाभ, २४ धर्म, २५ सोम, २६ संयम, २७ हेम, २८ क्षेम, २९ प्रिय, ३० उदय, ३१ माणिक्य, ३२ सत्य, ३३ जय, ३४ विजय, ३५ सुदर, ३६ सार, ३७ धीर, ३८ वीर, ३९ चारित्र, ४० चन्द्र, ४१ भद्र, ४२ समुद्र, ४३ शेखर, ४४ सागर, ४५ सूर, ४६ मंगल, ४७ शील, ४८ कुशल, ४९ विमल, ५० कमल, ५१ विशाल, ५२ देव, ५३ शिव, ५४ यश, ५५ कलश, ५६ हर्ष, ५७ हंस,, इत्यादि पदान्तासहस्रशः। श्री हीरविजयसूरिजी के समुदाय की १८ शाखाएँ : १ विजय, २ विमल, ३ सागर, ४ चंद्र, ५. हर्ष, ६ सौभाग्य, ७ सुन्दर, ८ रत्न, ९ धर्म, १० हंस, ११ आनंद, १२ वर्द्धन, १३ सोम, १४ रुचि, १५ सार, १६ राज, १७ कुशल, १८ उदय । ('ऐतिहासिक सज्झाय माला', पृ. १०) खरतरगच्छ की विशेष परिपाटियाँ : ... - खरतरगच्छ में नन्दी-नामान्त पद के सम्बन्ध की कतिपय : विशेष परिपाटियाँ देखने-जानने में आई हैं, जिनसे अनेक महत्त्वपूर्ण बातों का पता चलता है । अतः उनका विवरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014002
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages471
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size19 MB
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