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जैन साहित्य समारोह - गुच्छ र अब दिगम्बर सम्प्रदाय एवं खरतरगच्छ के अतिरिक्त श्वेताबरीय गच्छों में भी जितने मुनि-नामान्त पदों का उल्लेख देखने में आया है. उनका विवरण भी यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
दिगम्बर - नंदि, चन्द्र, कीर्ति, भूषण - ये प्रायः नन्दि संघ के मुनियों के नामान्त पद हैं । सेन, भद्र, राज, वीर्य - ये प्रायः सेन संघ के मुनि-नामान्त पद हैं । ('विद्वद् रत्नमाला', पृ. १८)
उपकेशगच्छ की २८ शाखाएँ
१ सुन्दर, २ प्रभ, ३ कनक, ४ मेरु, ५ सार, ६ चन्द्र, ७ सागर, ८ हंस, ९ तिलक, १० कलश, ११ रत्न, १२ समुद्र, १३ कल्लोल, १४ रंग; १५. शेखर १६ विशाल, १७ राज १८ कुमार, १९ देव, २० आनंद, २१ आदित्य, २२ कुंभ ।
('उपकेशगच्छ पट्टावली', जैन साहित्य संशोधक) उपर्युक्त नन्दी सूचियों से स्पष्ट है कि कहीं कहीं दिगम्बर विद्वान यह समझने की भूल कर बैठते हैं कि भूषण, सेन, कीर्ति आदि नामान्त पद दिगम्बर मुनियों के ही हैं. वह ठीक नहीं है। इन सभी नामान्त पदों का व्यवहार श्वेताम्बर सम्प्रदाय में भी होता रहा हे। :
नामपरिवर्तन में प्रायः यथाशक्य यह ध्यान भी रखा जाता है कि मुनि की राशि उसके पूर्वनाम की रहे । बहुत से स्थानों में प्रथमाक्षर भी वही रखा जाता है। जैसे – सुखलाल का दीक्षित नाम सुखलाभ, राजमल का राजसुन्दर रत्नसुन्दर आदि ।
तपागच्छ :
श्रीलक्ष्मीसागरसूरि (सं. १५०८-१७) के मुनियों के नामान्त
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