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________________ भारतीय साहित्य को जैन साहित्य की देन ३५३ कोई कथा-कहानी कही जाती है तो जन इसके दृष्टांतरूप में जब हृदय पर उसका गहरा असर होता है । उन कथाओं द्वारा बुरी बातों को छोड़ने व अच्छे कामों को करने की प्रेरणा मिलती है । इसी कारण जैनों ने महापुरुषो के जीवनचरित्र और कथा - कहानी सम्बन्धी बहुत से साहित्य का निर्माण किया है । उन में पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं के साथ सेंकडो-हजारो लोककथाओं को भी अपने रंगढंग से धार्मिक रूप देकर प्रचारित किया गया । इसीलिये एक एक लोकप्रिय कथा के सम्बन्ध में विविध भाषाओं और शैलियों में बहुत सी रचनाएँ जैन साहित्य में प्राप्त हैं । जिनसे उन कथाओं का विकास कैसे हुआ ? मूल रूप क्या था ? समय समय पर परिवर्तन और परिवर्द्धन कैसे व क्या हुआ ? - इसकी बहुत अच्छी जानकारी मिल सकती हैं। यद्यपि अभी इस दृष्टि से शोध और आलोचनात्मक अध्ययन विशेष नहीं हुआ पर सेंकडो शोधप्रबन्ध सहज ही लिखे जाने की गुंजाइश है । मैंने ऐसी लोककथाओं सम्बन्धी जैन साहित्य की जानकारी व चर्चा कई लेखो में की है । श्रीपालराजा, यशोधर आदि एक एक कथा पर पचासों जैन रचनाएं प्राप्त हैं । शताब्दियों तक यह क्रम चलता रहा, इस लिए अनेक स्थानों में अनेक कवियों और लेखकोने समय समय पर ऐसी रचना कई भाषा में व कई शैलियों में की है । लोककथाओं के विविध रूप और विकास का अध्ययन जैन कथासाहित्य द्वारा जैसे अच्छे रूप में किया जा सकता है, और किसी भी माध्यम द्वारा वैसा संभव नहि । जनभाषा के अनेक शब्द, रूप, कहावतें, मुहावरों का भी खुलकर प्रयोग जैसा जैन साहित्य में हुआ है, अन्यत्र दुर्लभ है, इसी लिए जैनेतर विद्वानो को भी यह कहना रहा कि संस्कृत भाषा जैनों की कुछ भिन्न प्रकार की बन गई जिस में देशी शब्दोंका प्रचुर व्यवहार और व्याकरण के कई प्रयोग मिलते हैं । संस्कृत विद्वानोने जो बहुत से 'देशी' और नामों को विकृत कर दिया है, जिस से मूल शब्द २३ Jain Education International #520 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014001
Book TitleJain Sahitya Samaroha Guchha 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1985
Total Pages413
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size17 MB
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