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________________ 50 Homage to Vaisali नमी से लाभ उठा सकती है। लेकिन यह सब काम तभी हो सकता है, जब कि छोटे-छोटे कोलों और क्यारियों को बड़े चकों में परिणत किया जाय, अर्थात् साप्ने की खेती का प्रचार हो। साझे की खेती के लिए किसानों को तैयार करना असम्भव नहीं है, यदि इसके लिए लगनवाले मार्गदर्शक, कम झगड़ेवाले ग्राम और सरकार की पूरी सहायता मिले। गावों में तोन तरह के लोग रहते हैं। किन्हीं के पास पर्याप्त भूमि होती है, किन्हीं के पास थोड़ी और कुछ लोग बिलकुल बिना खेत के होते हैं। खेतवालों-विशेष कर अधिक खेतवालों --को साझे की खेती में लाने के लिये यही रास्ता है कि उन्हें फसल के सारे खर्च को काटकर प्रति एकड़ जितना अनाज आज कल मिल रहा है, उतना आगे मिलते रहने का विश्वास दिला दिया जाय। इसके बाद उनको साझे की खेती में सम्मिलित होने में कोई उचित एतराज नहीं हो सकता। इस तरह हम खेतों की मेड़ों को तोड़ कर बड़े-बड़े चक बना सकते हैं, जिसमें नये ढंग से खेती करके उपज बढ़ायी जा सकतो है, जिससे निवासियों की आय बढ़ सकती है। फिर भोजपुरी कहावत के अनुसार “चारों वेद धमार्के, जौके डांडे", सांस्कृतिक कार्यों को भी आप तेजी से आगे बढ़ा सकते हैं / कृषि के साथ जिन उद्योगों की संभावना हो सकती है, उनकी संस्थापना से भी संघ-भूमि को समृद्ध कर सकते हैं। . हमें प्राचीन वैशाली से उत्प्रेरित हो नवीन प्रजातंत्रीय भारत के लिए यहाँ एक आदर्श भूखंड तैयार करना चाहिये।
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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