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________________ वैशाली का प्रजातन्त्र 45 (4) पारणा-"संच ने इस अधिकरण को उपवाहिका द्वारा निश्चय कराने के लिये बमुक-अमुक व्यक्तियों को चुन लिया। संघ इसे स्वीकारता है, इसीलिए वह चुप है, ऐसा में धारण करता है।" जब संख्या सर्व सम्मति से किसी निर्णय पर नहीं पहुंचती, तब इसके लिए सम्मति या बोट लेना पड़ता था। वोट के लिए उस समय छन्द शब्द का प्रयोग होता था। (इसी छन्द से आधुनिक चन्दा शब्द निकला प्रतीत होता है, जिसमें मत-दान के स्थान में अर्थदान का भाव आ गया है)। छन्द ग्रहण के लिए रंगीन शलाकाओं का उपयोग किया जाता था, जिन्हें छन्द-शलाका कहा जाता था। प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में प्रत्येक के लिए अलग अलग दो रंग की शलाकाएं निश्चित कर ली जाती थीं। फिर इन शलाकाओं को दो भिन्न-भिन्न डलियों में रख कर शलाकाग्रहापक सदस्यों के भीतर घूमता था, और वह अपने मत के अनुसार एक एक शलाका ले लेते थे। बाकी बची शलाकाओं को गिन कर मालूम कर लेते थे कि बहुमत किस पक्ष में है / इस बहुमत के निर्णय को यद्यसिक कहा जाता था। आज कल यह तरीका व्यवहार्य नहीं हो सकता और छन्द शलाका से छन्द पत्रिका का ढंग बेहतर है। . हमारे विशाल प्रजातन्त्र के इतिहास-भवन के ये थोड़े से अवशेष रह गये हैं और इन्हें भी हम रक्षित नहीं कर पाये थे, बल्कि इन्हें समुद्र पार सिंहल और चीन के लोगों ने सुरक्षित रखा / अथेन्स के प्रजातन्त्र की बहुत-सी बातें लिखित रूप में रक्षित रह गयीं, जिससे हम वहाँ की प्रजातन्त्रप्रणाली को जान सकते हैं। लेकिन वैशाली को वह सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। अथेन्स के शिल्पियों ने पाषाण पर सौन्दर्य सृष्टि की, जिससे उसके ध्वंसावशेषों में प्रजातन्त्रीय गौरव के साक्षात्कार करने में बड़ी सहायता मिली। हमारा दुर्भाग्य है कि प्रजातंत्रीय वैशाली के कलाकर पाषाण पर नहीं, काष्ठ और मृत्तिका जैसे मंगुर पदार्थों पर सौन्दर्य निर्माण किया करते थे। इसलिए वहुत कम हो आशा है कि हम वैशाली के 5वंसावशेषों में अधिक महत्त्व. पूर्ण वस्तुओं को प्राप्त कर सकेंगे। लेकिन यह धरती हमारे प्राचीन गौरव की किन-किन वस्तुओं को अपने भीतर छिपाये हुए है, इसके बारे में हम क्या कह सकते हैं ? आखिर वैशाली के सिर्फ एक छोटे से अंश की ही खुदाई हो पायी है। वैशाली नगरी ___बौद्ध-परम्परा के अनुसार लिच्छवियों की नगरी का यह नाम इसीलिए पड़ा कि जनसंख्या की वृद्धि के कारण नगर-प्राकार को कई बार हटा-हटा कर उसे विशाल किया गया / "उस समय वैशाली समृद्धिशाली, बहुत मनुष्यों से भरी, अन्न-पान-सम्पन्न थी। उसमें 7777 प्रासाद, 7777 कूटागार (कोठे), 7777 आराम (उद्यानगृह) और 7777 पुष्करिणियाँ थीं।" जैन ग्रन्थों से यह भी पता लगता है कि वैशाली के क्षत्रिय, ब्राह्मण और वणिक् अलग 1. विनय-पिटक, (चुल्लवग्ग) 4 // 3 // 5 / (मेरा अनुवाद पृष्ठ 412) 2. अंगुत्तरनिकाय अट्ठकथा 2145
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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