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________________ 28 Homage to Vaisah सम्मति जानने को भेजा, जो तब अपने मगध के अन्तिम वर्षावास के समय राजगृह के पास गृध्रकूट शिखर पर ठहरे थे। उनके उपस्थापक (Private Secretary) आनन्द ने जब बुद्ध के सामने इस विषय की चर्चा छेड़ी, तब उन्होंने आनन्द से सात प्रश्न किये और उनके उत्तर मिलने पर प्रत्येक बार अपना मत यों प्रकट किया कि वृजियों की वृद्धि (अभ्युदय) ही होगी और हानि (क्षय) न होगी / बुद्ध के कथन का सार संक्षेप में निम्नलिखित रूप से प्रकट किया जा सकता है (1) जब तक वृजि अपनी परिषद् की बैठकें भरपूर रूप में और बार-बार करते हैं; (2) जब तक वे मिलकर बैठते-उठते और अपने वृजिकार्यों (राष्ट्रीय कार्यों) को मिलकर करते हैं; (3) जब तक वे उचित विधि (Procedure) के बिना कोई कानून जारी नहीं करते, विधिपूर्वक बनाये कानून का उल्लंघन कर कोई कार्य नहीं करते, और वृजियों की विधिपूर्वक बने कानून से स्थापित प्राचीन संस्थाओं के अनुकूल आचरण करते हैं; ... (4) जब तक वे अपने वृद्धों और गुरुओं का सम्मान करते, आदर-सत्कार करते, उन्हें मानते-पूजते और उनकी सुनने लायक बातों को सुनते-मानते और तदनुकूल आचरण करते हैं; (5) जब तक वे अपनी कुल-स्त्रियों और कुल-कुमारियों पर जोर-जबरदस्ती कर उन्हें नहीं रोकते या उन पर अत्याचार नहीं करते; (6) जब तक वे अपने वृजि-चैत्यों (जातीय मन्दिरों और स्मारकों) का आदर-सत्कार और मान करते तथा उनको पहले से दी गयी धर्मानुकूल बलि (चढ़ावा-पूजापा आदि जो उन मन्दिरों और स्मारकों को बनाये रखने, उनकी मरम्मत आदि में खर्च होता था) का अपहरण नहीं करते, उसे नहीं छुड़ाते; (7) जब तक वे अपने अहंतों की शरण, रक्षा और पोषण का उचित प्रबन्ध करते हैं......" तब तक वृजियों की वृद्धि ही समझनी चाहिए, हानि नहीं / अमात्य वर्षकार और उसके राजा ने यह सुनकर समझ लिया कि वे सिर्फ सैनिक शक्ति से वृजियों को नहीं झुका सकते। इसका अभिप्राय यह हुआ कि किसी भी जाति को, जिसमें सामूहिक जीवन की स्वस्थ व बलवती धारा प्रवाहित होती हो, केवल बाहरी भौतिक शक्ति के दबाव से जीता नहीं जा सकता। बुद्ध के इस प्रवचन में “सत्त अपरिहाणि धम्म" अर्थात् हानि न होने देनेवाले सात धर्मों की व्याख्या बतलायी जाती है। उच्चतम श्रेणी के सामाजिक विचारों का इसमें समावेश किया गया है। और प्राचीन भारत के राजनीतिक चिन्तन का यह एक नमूना है। सजा अजातशत्रु और उसका अमात्य दोनों चतुर आदमी थे। उन्होंने वृजियों में फूट के बीज बोने भारम्भ किये और इस प्रकार वे वृजिदेश को मगध-साम्राज्य में मिलाने में सफल
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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