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________________ आज के भारत के लिए वैशाली का सन्देश 27 डंगरों का-सा व्यवहार होता रहा। भारतीय शर्तबन्द कुलियों के एक अंगरेज इतिहास लेखक ने उस सदी में यह लेख आंका है कि एक स्वतन्त्र हिन्दुस्तानी एक हबशी गुलाम के बनिस्बत सस्ता जिन्स था। पतन और गिरावट की वह अवस्था निस्सन्देह ऐतिहासिक परिस्थितियों के कारण आयी। और उसमें भी कोई सन्देह नहीं कि इसकी जड़ में है हमारी जनता की एक विशेष मनःस्थिति जिसे हमने प्रगतिहीनता और ह्रास को अनेक शताब्दियों के बीच विकसित किया / विदेशी साम्राज्यशाही के प्रचारकों ने इस स्थिति पर भरसक बल देने और उसे सही बनाए रखने का जतन किया है। उन्होंने ऐसी स्थापनाएँ की और उन्हें नौजवान हिन्दुस्तानियों के दिल में पैठाने का जतन किया, जैसे कि उदाहरणार्थ कहा गया कि भारत की जलवायु दुर्बलताकारी है, कि भारतीय समुद्रतट नौशक्तियों के विकास के योग्य नहीं, अथवा कि मारतीय लोगों की जातिगत बनावट ही ऐसी थी कि वे यूरोपवालों से होन हों। दूसरों ने कहा मारतीय, अथवा यों कहना चाहिए कि सभी पूर्वी लोग सदा से निरंकुशतापूर्वक शासित हुए हैं और कि लोकसत्ता फली-फूली है और फल-फूल सकती है सिर्फ यूरोप की जलवायु में और यूरोपीय लोगों के बीच इस तरह की स्थापनाएं १९वीं सदी में बहुतायत से प्रचलित थीं और आमतौर से सच मान ली गयी थी; पर वर्तमान शतक के आरम्भ में श्रीकाशीप्रसाद जायसवाल जैसे भारत के सपूत उनके विरुद्ध उठ खड़े हुए और उन्होंने घोषित किया कि गणतन्त्रीय और लोकसत्तापरक परम्पराएँ भारत की मिट्टी में भी ठीक जमती हैं और भारतीय इतिहास में सुपरिचित हैं। जायसवालजी ने साहित्य से और पुरातत्त्व की सामग्री से निर्णयकारी ढंग पर यह प्रमाणित कर दिया कि जनतन्त्र प्राचीन भारत में प्राचीन यूरोप की अपेक्षा अधिक लम्बे काल तक और अधिक विस्तृत क्षेत्रों में फलते-फूलते रहे और कि हिन्दू-धर्म-शास्त्र का उदय जनता की परिषदों की व्यवस्थाओं द्वारा हुआ / जायसवालजी की अनेकों स्थापनाओं पर, उदाहरणार्थ उनकी इस स्थापना पर कि भारत के प्रत्येक जनपद में एक सार्वजनिक (जनपद) परिषद् होती थी, उस समय काफी विवाद उठाया गया। अब, उनकी मृत्यु के बाद, पुरातत्त्वं की ताजा उपलब्धियों ने, उन्हें निर्णयकारी रूप में प्रमाणित कर दिया है। प्राचीन भारत के उन लोकतन्त्रों में से एक सबसे पुराना और सबसे अधिक ज्ञात नमूना था वृजि जनपद का, जिसकी राजधानी वैशाली में थी। उन लोगों को, जो अब कहते हैं कि भारतीय सदा निरंकुशता पूर्वक शासित होते रहे, हमारा जबाब है वैशाली / और हमारी वर्तमान निराशा में भविष्य की आशा वैशाली के आदर्श के पुनरावर्तन में है। वह अदर्श क्या है ? वह है हर व्यक्ति को इस बात की पूरी समझ का होना कि उसका क्षेम-कुशल निर्भर है समाज के योग-क्षेम पर और इस समझ से अनुप्राप्त कर्तव्यों को दृढ़तापूर्वक निभाना। इसका स्वभाविक परिणाम होगा एक स्वस्थ, सहज, सामूहिक जीवन का पनपना; वैसा जोवन जैसा कि प्राचीन वृजि देश में पनपता था, जिसकी झांकी हम बुद्ध के अन्तिम प्रवचनों में से एक में पाते हैं / मगध का राजा अजातशत्रु, जिसकी राजधानी राजगृह में थी, वृजिसंघ पर आक्रमण करना और उसे अपने अधीन करना चाहता था / उसने अपने अमात्य वर्षकार को बुद्ध के पास टोह लेने और प्रस्तावित आक्रमण के विषय में उनकी
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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