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________________ वंशाली के लिच्छवि-गणराज्य का पुनरुत्थान / 467 . 8. कुमारदेवी-चन्द्रगुप्त के सिक्कों पर 'लिच्छवयः' लिखा मिलता है। 'लिच्छवयः' 'लिच्छवि' शब्द का संस्कृत में बहुवचन-रूप है। कुमारदेवी वैशाली की लिच्छवि-राजकुमारी थी, जो मगध के गुप्तवंश के प्रथम प्रभावशाली राजा ('महाराजाधिराज') चन्द्रगुप्त प्रथम से व्याही गयी थी। इस विवाह के फलस्वरूप वैशाली-विदेह एवं मगध एक राजनीतिक-प्रशासनिक सूत्र में बंध गये और इसीको जतलाने के लिए सिक्कों पर लिच्छविजातिबोधक 'लिच्छवयः' शब्द अंकित कराया गया। इससे प्रतीत होता है कि वैशाली-विदेह का राज्य लिच्छवि गणतंत्र से लिया गया था, क्योंकि उस समय के अन्य गणतंत्रात्मक राज्यों में भी सिक्कों पर उन जातियों या कुलों के नाम अंकित कराते थे, जिनका शासन चलता था और राजतंत्रात्मक राज्यों में सिक्कों पर राजाओं के नाम अंकित कराये जाते थे, जो उस समय राज्यासीन होते थे। - दो और पक्ष हैं, जो स्वतंत्र तकों के रूप में नहीं हैं, केवल परिस्थितियों की व्याख्या भर करते हैं / इन्हें भी दे देना आवश्यक प्रतीत होता है। 9. तिब्बती-साहित्य में बुद्धकालीन लिच्छवियों को 'लिच्छवि राजा' कहा गया है, जबकि हमें मालूम है कि वे राजतंत्रात्मक 'राजा' नहीं थे। इस विसंगति का कारण यह मालूम पड़ता है कि लिच्छवि-संस्था (संसद्) का प्रत्येक सदस्य 'राजा' कहा जाता था ('जातक', 'ललितविस्तर') और तिब्बतियों ने भी वही शब्द प्रयुक्त किया, जिसका अंगरेजी अनुवाद 'किंग्स' किया गया। अध्यक्ष को भी 'राजा' ही कहते थे ('जातक', 'अर्थशास्त्र')। अतएव, यदि तिब्बती-साहित्य में बाद के (यथा, पहली सदी ईसवी के) लिच्छवि-शासकों के लिए 'राजा' शब्द आया है, तो वह संसद-सदस्य अथवा अध्यक्ष के लिए प्रयुक्त समझा जाना चाहिए। 10. इतिहास से हमें ज्ञात है कि नेपाल का लिच्छवि-राजवंश सन् 879 ई० तक राज करता रहा। कहा जा सकता है कि जब वैशाली के लिच्छवि नेपाल जाकर राजतंत्र के रूप में प्रकट होते हैं, तब वैशाली में भी वे पिछले समय में, अर्थात् 125 ई० पू० से 319 ईसवी के बीच, राजतंत्रात्मक ही रहे होंगे, गणतंत्रात्मक नहीं। इसका जो उत्तर पहले दिया जा चुका है, उसमें थोड़ा और जोड़ा जा सकता है / प्रथमतः, गणतंत्र के इस दूसरे युग में बहुत आगे चलकर, यानी तीसरी-चौथी सदियों में, संभवत: लिच्छवि-गणतंत्र पर राजतंत्र का प्रभाव आने लगा था, मगर वह बहत स्पष्ट नहीं हुभा था। यदि पूरा प्रभाव पड़ जाता, तो गुप्त सिक्कों पर 'लिच्छवयः' अंकित नहीं होता। दूसरे, लिच्छवियों के नेपाल चले जाने का समय चौथी सदी का प्रारम्भ न होकर पांचवीं-छठी सदी है, जब वे अपने राज्य से वंचित हो, गुप्त-साम्राज्य के अन्तर्गत रहकर, अपनी पुरानी गणतंत्रात्मक परम्परा से अच्छी तरह कट चुके थे
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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