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________________ :466 Homage to Vaisali जिल्द 3, भाग 2); क्योंकि 'महापरिनिब्बानसुत्त' की उक्त सूची में राजा अजातशत्रु, वेठदीप के ब्राह्मण और द्रोण ब्राह्मण को छोड शेष सभी दल निश्चित रूप से गणतांत्रिक ('संघ', 'गण') थे। मेरे विचार से लिच्छविसंघ के अंग के रूप में विदेह में गणतंत्र ई० पू० दूसरी सदी के अन्त से चौथी सदी ईसवी के प्रारंभ तक रहा और इसी समय के अन्तर्गत अथवा इसके तुरत बाद बुद्धशरीरावशेषप्राप्तिकर्ताओं की पहले से प्रचलित उक्त सूची में मिथिला के विदेहों को गणतांत्रिक समझकर सम्मिलित कर लिया गया। 5. जब ईसा-पूर्व पहली सदी का प्रथम चरण चल रहा था, तब मगध पर शुग वंश का राज था। उस समय सिंहलदेश में बौद्धों की एक संगीति हुई थी। इसे चौथी संगीति माना गया है। सिंहली इतिहास में लिखा है कि इसमें वैशाली के बौद्ध भी सम्मिलित हुए थे। इस घटना का महत्त्व शायद अबतक ठीक से नहीं आंका गया है। स्वतंत्र उल्लेख से लगता है कि वैशाली तबतक मगध के हाथों से निकल चुकी थी। अनुमान किया जा सकता है कि सुदूर सिंहल की संगीति में सम्मिलित होने के लिए वैशाली के बौद्धों का दस्ता भेजनेवाला स्वतंत्र लिच्छवि-राज्य गणतन्त्रात्मक था, जिसकी पुरानी (बुद्ध-पूर्व) गणतांत्रिक पद्धति बौद्धधर्म की गणतांत्रिक पद्धति का आधार बनी थी। गणतंत्र में सदस्यों का बार-बार भाग लेना अत्यावश्यक माना गया है ('महापरिनिब्बानसुत्त')। वैशाली के गणतंत्रीय लिच्छवि-बौद्धों को यह अच्छी तरह ज्ञात था। 6. 'ललितविस्तर' (अध्याय 3, पृष्ठ 15, दरभंगा संस्करण) नामक प्रसिद्ध बौद्ध अथ में, जिसकी रचना पहली या दूसरी सदी ईसवी में हुई थी, बुद्ध के जन्म के बारह वर्ष पहले (579 ई० पू०) की राजनीतिक अवस्था का वर्णन है। इसमें लिखा है कि बैशाली में गणतंत्र था और वहां का प्रत्येक सदस्य अपने को 'राजा' मानता था'एकक एवं मन्यते अहं राजा अहं राजेति'। यह मानने में कोई बाधा नहीं है कि 'ललितविस्तर' सम्भवतः अपनी रचना के समय की अवस्था का साथ-ही-साथ चित्रण कर रहा है। 7. चाहे साहित्य हो या अभिलेख या सिक्के-कहीं भी इस युग (दूसरी सदी ई० पू० से चौथी सदी ईसवी तक) के लिए, जिसे बिहार को ध्यान में रखकर शुंगलिच्छवि-कुषाणकाल कहा जा सकता है, वैशाली के किसी राजवंश या राजा का उल्लेख नहीं आता। वैशाली में अबतक काफी खुदाई हो चुकी है (कनिंघम-काल, 1903-04, 1913-14, 1950, 1958-62, 1976-78) और इस युग में यह समृद्ध अवस्था में थी, जैसाकि वहाँ प्राप्त पुरावशेषों से पता चलता है / परन्तु, राजा के नाम के बारे में पूरी चुप्पी है। वहाँ मिट्टी की मुहरें ('क्ले सील्स') बहुतायत से मिली हैं, पर किसी मुहर पर इस युग (करीब 125 ई० पू० से 319 ईसवी तक) के राजा या राजवंश का नाम नहीं मिलता। इसका यही अर्थ हो सकता है कि वहां गणतंत्र प्रचलित था / अब मैं अपने सबसे सबल तर्क की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा, जिसका उल्लेख प्रायः किया जाता है।
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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