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________________ 416 Homage to Vaisali ___जापान के प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान डा० देसेज तइतरो सुजुकी ने विमलकीति के नाम की व्याख्या करते हुए लिखा है-"विमलकीर्ति का अर्थ है पवित्र आचरण और उज्ज्वल कीर्ति वाला एक सच्चा सत्पुरुष" / जापान में उन्हें जेन विचारधारा का पिता कहा जाता है / डा० सुजुकी की रचनाओं से विदित होता है कि कुमारजीव द्वारा किये गये 'विमलकीर्ति निर्देश सूत्र' के चीनी अनुवाद का जापान के महायान बौद्ध धर्मावलम्बियों पर असाधारण प्रभाव पड़ा है / जापानी विद्वान डाक्टर के० ओहरा ने 1898 ई० में और डा० इदजुमी ने 1924 ई० में कुमारजीव के चीनी अनुवाद का अंग्रेजी अनुवाद किया है ('ईस्टर्न बुद्धिज्म')। 1951 में जापानी विद्वान सुसुम यामागुची ने 'विमलकीर्ति निर्देश सूत्र' के प्रथम परिवर्त की जापानी व्याख्या की। 1959 में यामादामुमोन रोशी ने सम्पूर्ण 'विमलकीर्ति निर्देश सूत्र' का तीन खण्डों में जापानी अनुवाद किया। उसके बाद 1964 में फाकउर शोबुन ने इस सूत्र का जापानी अनुवाद किया। ये दोनों अनुवाद भी कुमारजीव वाले चीनी अनुवाद पर आधारित हैं। इसके अलावा डा० अकिरा यूयामा, डा० जिकिडो ताकासाकी और रुइसो सोइदा ने अपने लेखों में 'विमलकीति निर्देश सूत्र' के महत्त्व पर प्रकाश डाला है। जापान के फुकुजीनारा मन्दिर और हरिऊजी मन्दिर में आचार्य विमलकीर्ति की मूर्तियां स्थापित हैं। कोरिया के सुप्रसिद्ध कलाकार हुबुइन ने आचार्य विमलकीर्ति का एक सुन्दर चित्र बनाया है। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान एस० पोतीनान्ता ने चीनी अनुवाद के आधार पर 1963 में इस सूत्र का थाई अनुवाद किया है और प्राध्यापक लामात ने 2059 पृष्ठों में इस सूत्र का फ्रान्सीसी अनुवाद किया है / यह अनुवाद चार खण्डों में विभक्त है। जेल फिसर और टी• योकोटा ने इस सूत्र का जर्मन भाषा में अनुवाद किया है। कनाडा के बौद्ध विद्वान रिचर्ड हफ रॉबिन्सन ने इस सूत्र का अंग्रेजी अनुवाद किया है। चीनी विद्वान् चार्ल्स लुक (लु-कुयान) ने इस सूत्र के चीनी अनुवाद का एक दूसरा अंग्रजी अनुवाद भी किया है। भिक्षु पासादिक के संस्कृत रूपान्तर का डा. लालमणि जोशी ने हिन्दी अनुवाद किया है / डा. जोशी पहले भारतीय विद्वान हैं, जिन्होंने इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद किया है। इसके पूर्व 1959 ई० में 'जर्नल ऑव बिहार रिसर्च सोसाइटी' के '10 अल्तेकर मेमोरियल वोल्यूम' में हिन्दी में वैशाली की इस विस्मृत विभूति के सम्बन्ध में इन पक्तियों के लेखक का एक लेख प्रकाशित हुआ था। किसी भी भारतीय भाषा में इस विषय पर प्रकाशित होनेवाला वह पहला लेख था। . m ALLAIMILAIMmmm
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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