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________________ Va wwwwwwwwww वैशाली - रामधारी सिंह 'दिनकर' ओ भारत की भूमि बन्दिनी ! ओ जंजीरों वाली ! तेरी ही क्या कुक्षि फाड़ कर जन्मो यो वैशाली ? वैशाली ! इतिहास-पृष्ठ पर अंकन अंगारों का वैशाली ! अतीत-गह्वर में मुंजन तलवारों का वैशाली ! जन का प्रतिपालक, गण का आदि विधाता! जिसे ढूंढ़ता देश आज उस प्रजातन्त्र की माता रुको, एक क्षण पथिक ! यहाँ मिट्टी को शीश नवाओ राजसिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ डूबा है दिनमान इसी खंडहर में डूबी राका छिपी हुई है यही कहीं धूलों में राजपताका ढंढो उसे. जगाओ उनको जिनकी ध्वजा गिरी है जिनके सो जाने से सिर पर काली घटा घिरी है कहो, जगाती है उनको बन्दिनी बेड़ियोंवाली नहीं उठे वे तो न बसेगी किसी तरह वैशाली। फिर आते जागरण-गीत टकरा अतीत-गह्वर से उठती है आवाज एक वैशाली के खंडहर से "करना हो साकार स्वप्न को तो बलिदान चढ़ाओ ज्योति चाहते हो तो पहले अपनी शिखा जलाओ जिस दिन एक ज्वलन्त पुरुष तुम में से बढ़ आयेगा एक-एक कण इस खंडहर का जीवित हो जायेगा किसी जागरण की प्रत्याशा में हम पड़े हुए हैं लिच्छवी नहीं मरे, जीवित. मानव ही मरे हुए हैं।"
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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