SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 298 Homage to Vaisali मा०-पषिक, मैं एक साधारण ग्रामीण हूँ। लेकिन तुमने मेरी आँखें खोल दी। तुमने मुझे बताया कि मैं किस विशाल धरोहर का उत्तराधिकारी हूँ। तुमने मुझे पिछले युगों का सिंहावलोकन कराया। अतः मैं तुम्हारी खोज पूरा करूंगा। मैं भविष्य के गौरवमय युग का निर्माण करूंगा / मैं इन खंडहरों की नींव पर नयी वैशाली को खड़ा करूंगा। मैं लिच्छवियों की सन्तान हूँ-वह जिसे काल नष्ट नहीं कर सकता, जिसे सदियों की लि छिपा नहीं सकती। मैं वंशाली की अमर ज्योति हूँ-जनशक्ति और गणतन्त्र को निमय आवाज हूँ / आओ मेरे साथ / गाओ मेरे संग - (सम्मिलित स्त्री पुरुष स्वर में-) "जय लिच्छविगान ! जय क्षत्रिय-प्राण ! "जय जय वैशाली गणमान / सिंहों के पूत, यौवन के दूत / इक-सम वैशाली संतान / जय जय वैशालीगणमान // 3
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy