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________________ 296 Homage to Vasali ब०-दासी पामारी है। बुख-लेकिन आज मेरे साथ तुम्हारे आम्रकानन में वे गणराजन् मी आर्यगे। १०-अवश्य आयें / राजपुत्रों के स्वागत में अम्बापाली बुथल है। बुद्ध-आज वे राजपुत्र की तरह नहीं, एके मिदु के पीछे आ रहै हैं / अ० - जिसके अमूल्य वचनों की मिक्षा पाने को जम्बूद्वीप आतुर रहता है, उसे मैं भिक्षु कैसे समझं? बुद्ध-तुम्हारा वाक्-चातुर्य धन्य है, भद्रे ! तुम्हारी यह जन्मभूमि वैशाली धन्य है / वैशाली ने तथागत को क्रय कर लिया है / इसके सुरम्य भवन, ईसके गगनचुम्बी पैत्य, इसके निवासियों की उदारता- समी में मुझे अनुपम आकर्षण लगता है / वैशाली में तथागत को अमूल्य पंचरत्न मिले हैं-धम्म की परिणति, धम्म के सच्चे अनुयायी, कृतज्ञजन, तपागत की अवतारणा और तथागत के धम्म के प्रचारक / युगयुगों तक तथागत की स्मृति में वैशाली संयुक्त रहेगी। ( वाद्य संगीत / पट परिवर्तन / ) ग्रामीण-ऐसी जो वैशाली नगरी थी पथिकं, उस पर तो कोई हाथ नहीं लगा सकता था। पथिक-वह एक कहानी है भाई ! मगध के राजा बिम्बिसार मै तो लिच्छवियों ने बुरी तरह पुत्री छलना का विवाह भी बिम्बिसार से कर दिया। छलना का पुत्र हुआ अजातशत्रु-निर्मम, निष्ठुर, महत्त्वाकांक्षी सम्राट् जिसने अपने पिता को बन्दी किया। अपनी मां के घरवालों-लिच्छवियों को क्यों छोड़ता ? लिच्छवियों पर आक्रमण करने के लिए उसने पाटलिपुत्र में विशाल दुर्ग बनवाया। पहला आक्रमण तो निष्फल रहा, क्योंकि लिच्छवि एक मत होकर जनतंत्र के लिए लड़े। लेकिन दूसरी बार उसने अपने मंत्री वर्षकार को लिच्छवियों के बीच फूट डलवाने के लिए भेजा और इस तरह वैशाली को बिना युद्ध किये ही पराजित कर दिया। प्रा०-क्या तमी से वैशाली की वह दशां हुई, जो आज हैं ? 50- नहीं / यद्यपि वज्जिसंघ की राजनीतिक शक्ति नष्टप्राय हो गयी, तथापि लिच्छवि-जाति का शौर्य और प्रताप सदियों तक उत्तर भारत को प्रभावित करता रहा / बुद्ध के मरने के सौ वर्ष बाद वैशाली में 700 बौद्ध भिक्षुओं को द्वितीय धर्म-समा हुई / अन्य राज्यों के नृप लिच्छवि कुटुम्बों में विवाह सम्बन्ध स्थापित करने को इच्छुक रहे और यहां तक कि ईसा की चौथी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त प्रथम ने एक लिच्छवि कुमारी कुमारदेवी से विवाह किया। उसके पुत्र ने तो अपने सिक्कों पर खुदवाया--"लिच्छविदौहित्र"। प्रा.-पथिक, हमारे यहाँ तो कई सोने के सिक्के मिले हैं , बड़े सुन्दर /
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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