SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 292 Homage to Vaisali ( कोलाहल, फिर महानायक चेटक बोलते हैं।) चे०-आर्यमहालि ! आपको सुदूर तक्षशिला में शिक्षा प्राप्त करने भेजा गया था। वहाँ आपने वैशाली का नाम ऊंचा किया। आपकी उस कीति और आपके गुणों पर मुग्ध होकर गणसमा ने आपको गणराजन् निर्वाचित किया है। इस पुष्करिणी में स्नान करने के पूर्व आपको हमारी परम प्रिय नगरी के इन सबै नर-नारियों के सामने वह व्रत लेना है, जो आपको इस अभिषेक के उपयुक्त बनायेगा। मन्तेगण सुनें / आर्यमहालि के वचन सुनें। महालि-"मैं, क्षेमेन्द्र का पुत्र महालि, प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं लिच्छवि मर्याद्वाबों का सर्वदा पालन करूंगा, गणसभा में एकमत होकर आचरण करूंगा, वज्जियों की प्राचीन संस्थाओं का सम्मान करूंगा, वृद्धों और बड़े बूढ़ों का उचित आदर करूंगा। स्त्रियों और बालिकाओं पर बल प्रयोग नहीं करूंगा। वजी के त्यों की प्रतिष्ठा करूंगा, अपने अहंतों का उचित रक्षण करूंगा और कठोर एवं श्रमशील जीवन बरतूंगा।..." -धन्य हो गणराज्य महालि ! यही लिच्छवियों को सच्ची मर्यादा है, जिसके लिए वैशाली युगयुगों तक प्रसिद्ध रहेगी। अब आप पुण्यसलिला पुष्करिणी में स्नान करें और हमारी नगरी की पताका को, जिस पर सिंह का लिच्छवि चिह्न अंकित है, प्रणाम करें। (विराट् संगीत और नृत्य की ध्वनि जो धीरे-धीरे मन्द हो जाती है / ), चे०-कौन ? आर्यवासव | गंगातीर से यहां क्यों आये ? तुम्हें तो उल्काचेल में रहकर पज्जिसंघ के शत्रुओं पर ध्यान रखना था। वा०- शत्रु कटिबद्ध है आर्यचेटक / चे०-कौन शनु ? वा०-मगधराज बिम्बिसार / मैंने देखा, गंगा के उस पार पाटलि गाम के पास नौकाओं में उसकी सेना सवार हो चली है। ०-यह घटता ! हम प्रस्तुत हैं / प्रतिहारो ! तुरही बजाओ। मन्तेगण, आपने सुना बिम्बि सार हमारे प्यारे वज्जिसंघ पर आक्रमण कर रहा है। उसे वैशाली की संघशक्ति का अनुमान नहीं है। (सम्मिलित स्वर-"हम उसे कुचल देंगे"-1) चे०-अवश्य ! अभी गणसन्निपात होगा। सब लोग संस्थागार में चलें (कोलाहल)। और सुनिये / हमारे नये गणराजन् महालि, जिनका अभी अभिषेक हुआ है, सुदूर तक्षशिला में सैन्यशिक्षा प्राप्त कर चुके हैं / गण की ओर से युद्ध का भार उन्हीं पर होगा। महालि-मैं प्रस्तुत हूँ, महानायक ! जय लिच्छविगण की जय ! (सम्मिलित स्वर-"जय लिच्छविगण की जय"1)
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy