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________________ 242 Homage to Vaisali है। जीव स्वतन्त्र है / वह अनन्त चतुष्टय से सम्पन्न रहता है। उसमें अनन्त सामध्यं भरी हुई है। वह इस सामध्यं को नहीं जानता, इसीलिए वह संसार में नाना क्लेशों को भोग रहा है; परन्तु अपने सच्चे स्वरूप का ज्ञान होते ही वह क्लेशमय बन्धनों से मुक्ति पा करके बली होकर विचरने लगता है। जगत् के कोने-कोने में जीवों की सत्ता मानना, उन्हें किसी प्रकार भी हिंसा न पहुंचाना, मानव ही अनन्त सामयं की पहचान करना आदि सुन्दर शिक्षाएं हमें वैशाली के इस महापुरुष ने दी है। इस दिव्य विभूति की यह वाणी सदा स्मरण रखने योग्य है कि जब तक व्याधियां नहीं बढ़तीं, जब तक इन्द्रियां अशक्त नहीं होती, तब तक धर्म का आचरण कर लेना चाहिए, बाद में कुछ होने का नहीं जरा जाव न पीडेइ, वाही जाव न बढइ / जाविदिया न हायन्ति, ताव धर्म समायरे // .. .... ... ... Tal SINO aliNTak Host:
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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