SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 164 Homage to Vaidah वैशाली के राजा चेटक का सम्बन्ध उस समय के प्रायः सभी प्रमुख रामानों से था। घटक की बहन त्रिशला का विवाह कुण्डपुर के राजा सिद्धार्थ से हुआ था। वे ही भगवान् महावीर की माता थीं। ____आवश्यकचूर्णि में उल्लेख आता है कि, महाराज चेटक के सात पुत्रियां थीं—प्रभावती वीतिभय के राजा उद्रायण से ब्याही थी, पयावती चम्पा के राजा दधिवाहन से ब्याही थी, मृगावती कौशाम्बी के राजा शतानीक से ब्याही थी, शिवा उज्जयिनी के राजा प्रद्योत से ब्याही थी, ज्येष्ठा कुण्डग्राम में महावीरस्वामी के सांसारिक जीवन के बड़े भाई नन्दिवर्द्धन से ब्याही थी और चेल्लणा राजगृह के राजा भम्भसार (श्रेणिक) से ब्याही थी। बुद्ध के काल में वैशाली श्रमण-निर्ग्रन्थों (जैनों) का एक बड़ा सुदृढ़ केन्द्र था। यह बात न केवल जैनग्रन्थों से, वरन् बौद्धग्रन्थों से भी प्रमाणित है। 'महावस्तु' में कथा आती है कि घर छोड़कर वैराग्य लेने के बाद बुद्ध वैशाली में आराडकालाम के पास भी आये थे, जो जैन था। प्रसंगवश एक बात और कह दूँ कि, अंगुत्तरनिकाय की मनोरथपूरणी टीका में कहा गया है कि, बुद्ध के चाचा वप्प स्वयं जैन थे। वैशाली के पतन के कारण का भी उल्लेख जितने विस्तृत रूप में जैनग्रन्थों में है, उतने विस्तृत रूप में अन्यत्र कहीं नहीं है। अपने पिता मम्मसार. (श्रेणिक) की मृत्य के बाद कूणिक ने अपनी राजधानी राजगृह से बदलकर चम्पा कर ली। भम्भसार ने अपना सेचनक नामक गन्धहस्ती और देव-प्रदत्त हार अपने हल्ल-विहल्ल नामक पुत्रों को दे रखा था। एक बार विहल्ल सेचनक हाथी पर बैठकर अपनी पत्तियों के साथ गंगास्नान करने गया। उसका वैभव देखकर कूणिक की पत्नी पद्मावती को ईर्ष्या हुई और उसने सेचनक तथा हार अपने भाइयों से मांग लेने के लिए कूणिक को बाध्य कर दिया / कूणिक के डर से हल्ल-विहल्ल भागकर अपने नाना चेटक के यहाँ चले गये / कूणिक ने चेटक से भाइयों को सौंप देने को कहा। चेटक ने इनकार कर दिया। इसी बात पर कूणिक काल आदि अपने दस भाइयों के साथ वैशाली पर चढ़ आया। चेटक भी अपने 18 गणराजाओं के साथ मैदान में आये। चेटक ने प्रतिपन्न-व्रत ले रखा था। एक दिन में वह केवल एक बाण चलाते थे; पर वह बाण अमोघ होता था। दस दिनों की लड़ाई में कूणिक के साथी दसों भाई मारे गये। - कूणिक को ज्ञात हुआ कि कूलवालक नामक एक पतित मुनि युद्ध में उसका सहायक हो सकता है। किसी प्रकार छल-कपट द्वारा कूलवालक बुलाया गया। उसने नगर में . जाकर सुव्रतस्वामी का स्तूप देखा। वह समझ गया कि इसी स्तूप के प्रभाव से वैशाली का पतम नहीं हो रहा है। अतः, प्रपंच रचकर उसने उस स्तूप को खुदवा डाला और फिर वैशाली का पतन हुआ। वैशाली के इस युद्ध का वर्णन 'भगवतीसूत्र' और 'निरयावलिका' में बड़े विस्तार से . आता है तथा कूलवालक का चरित्र उत्तराध्ययन की टीका में दिया है /
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy