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________________ वैशाली, जैनधर्म और जैनदर्शन 163 . "ज्ञानवृद्ध पुरुष गणराज्य के नागरिकों की प्रशंसा करते हैं / संघबद्ध लोगों के मन में आपस में एक-दूसरे को ठगने की दुर्भावना नहीं होती। वे सभी एक-दूसरे की सेवा करते हुए सुखपूर्वक उन्नति करते हैं। "गणराज्य के श्रेष्ठ नागरिक शास्त्र के अनुसार धर्मानुकूल व्यवहारों की स्थापना करते हैं / वे यथोचित दृष्टि से सबको देखते हुए उन्नति की दिशा में आगे बढ़ते जाते हैं / "गणराज्य के श्रेष्ठ पुरुष पुत्रों और भाइयों को भी यदि वे कुमार्ग पर चलें, तो दण्ड देते हैं / सदा उन्हें उत्तम शिक्षा प्रदान करते हैं और शिक्षित हो जाने पर उन सबको बड़े आदर से अपनाते हैं, इसलिए वे विशेष उन्नति करते हैं।" बुद्ध ने भी वैशाली के गणराज्य के सम्बन्ध में कहा था : 1. वज्जी बराबर बैठक करते हैं। 2. वज्जी एक हो बैठक करते हैं, एक हो उत्थान करते हैं, एक हो कत्र्तव्य करते हैं / 3. वज्जी अप्रजप्त को प्रज्ञप्त नहीं करते और प्रज्ञष्ठ का उच्छेद नहीं करते। 4. वज्जियों के जो वृद्ध हैं, उनका वह सत्कार करते हैं, गुरुकार करते हैं, मानते हैं, पूजते हैं, उनकी सुनने योग्य बात मानते हैं / 5. जो कुलस्त्रियां हैं, कुल-कुमारियां हैं, उन्हें वह छीनकर जबरदस्ती नहीं बसाते / 6. वज्जियों के भीतर-बाहर जो चैत्य हैं, वह उनका सत्कार करते हैं, उनके लिए पहले किये गये दान का पहले की गई धर्मानुसार बलि (नैवेद्य) का लोप नहीं करते! ___ 7. वज्जी लोग अहंतों की अच्छी तरह धर्मानुसार रक्षा करते हैं, ताकि भविष्य में अहंत राज्य में आयें और आये अहंत सुख से विहार करें। गणराज्य के इन गुणों से युक्त वृज्जियों का यह संघ भारत के प्राचीनतम गणराज्यों में था। इस गणराज्य में वैशाली के लिच्छवि तथा विदेह दोनों ही राज्य सम्मिलित थे और पूरे गणराज्य की राजधानी वैशाली थी। इस राज्य का उल्लेख पाणिनि तथा पतंजलि के महाभाष्य में भी आता है। महापरिनिब्बानसुत्त में 'वृज्जी' राष्ट्र का नाम बताया गया है। इस गणतन्त्र में लोगों को राजनीतिक दृष्टि से पूर्ण स्वतन्त्रता थी। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि लिच्छवियों और विदेहों के गणतन्त्र के अध्यक्ष हैहयकुल के चन्द्रवंशीय महाराज चेटक थे। वैशाली में जैसी राजनीतिक स्वतन्त्रता थी, उसी प्रकार की धार्मिक स्वतन्त्रता भी थी। वैशाली-संघ के अध्यक्ष महाराज चेटक यद्यपि स्वयं जैन श्रावक थे, पर उनके गोत्र का ही एक व्यक्ति तापस था, जो दधिवाहन की पत्नी (प्रत्येकबुद्ध करकण्डु की माता) पद्मावती से दन्तपुर के निकट मिला था। यह कथा उत्तराध्ययन की टीका में आई है।
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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