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________________ 86 Homage to Vaisali पुत्र, गृहपति पुत्र और ब्राह्मण पुत्र तथा पुत्रियां बुद्ध महावीर के पीछे पागल होकर निकल पडे थे वैसे ही कई अध्यापक, वकील, जमींदार और अन्य समझवार स्त्री-पुरुष गांधीजी के प्रभाव में आये। जैसे उस पुराने युग में करुणा तथा मैत्री का सार्वत्रिक प्रचार करने के लिए संघ बने थे वैसे ही सत्याग्रह को सार्वत्रिक बनाने के गांधीजी के स्वप्न में सीधा साथ देनेवालों का एक बड़ा संघ बना जिसमें वैशाली-विदेह या बिहार के सपूतों का साथ बहुत महत्त्व रखता है। इसीसे मैं नवयुगीन दृष्टि से भी इस स्थान को धर्म तथा विद्या का तीर्थ समझता हूँ। और इसी भावना से मैं सब कुछ सोचता हूँ। . मैं काशी में अध्ययन करते समय आज से 46 वर्ष पहले सहाध्यायिओं और जैन साधुओं के साथ पैदल चलते-चलते उस क्षत्रियकुण्ड में भी यात्रा की दृष्टि से आया था जिसे आजकल जैन लोग महावीर को जन्मभूमि समझ कर वहां यात्रा के लिये आते हैं और जहां लक्खीसराय जंक्शन से जाया जाता है। यह मेरी बिहार की सर्व प्रथम धर्मयात्रा थी। इसके बाद अर्थात् करीब 43 वर्ष पूर्व मैं मिथिला-विदेह में अनेक बार पढ़ने गया और कई स्थानों में कई बार ठहरा भी। यह मेरी विदेह की विद्यायात्रा थी। उस युग और इस युग के बीच बड़ा अन्तर हो गया है। अनेक साधन मौजूद रहने पर भी उस समय जो बातें मुझे ज्ञात न थी वह थोड़े बहुत प्रमाण में ज्ञात हुई हैं और जो भावना साम्प्रदायिक दायरे के कारण उस समय अस्तित्व में थी आज उसका अनुभव कर रहा हूँ। अब तो मैं स्पष्ट रूप से समझ सका हूँ कि महावीर की जन्मभूमि न तो वह लिच्छुआड़ या पर्वतीय क्षत्रियकुण्ड है और न नालन्दा के निकट कुण्डलग्राम ही / आज के बसाढ़ की खुदाई में से इतने अधिक प्रमाण उपलब्ध हुए हैं और इन प्रमाणों का जैन बौद्ध परम्परा के प्राचीन शास्त्रों के उल्लेखों के साथ इतना अधिक मेल बैठता है तथा फाहियान एनसांग जैसे प्रत्यक्षदर्शी यात्रियों के वृत्तान्तों के साथ इतना अधिक संवाद होता है कि यह सब देखकर मुझको उस समय के अपने अज्ञान पर हंसी ही नहीं तरस भी आती है। और साथ-ही-साथ सत्य की जानकारी से असाधारण खुशी भी होती है। वह सत्य है कि बसाढ़ के क्षेत्र में जो बासुकुण्ड नामक स्थान है वही सचमुच क्षत्रियकुण्ड है। विभिन्न परम्पराओं की एकता . भारत में अनेक धर्म परम्पराएं रही हैं / ब्राह्मण परम्परा मुख्यतया वैदिक है जिसकी कई शाखाएं हैं। श्रमण परम्परा की भी जैन, बौद्ध, आजीवक, प्राचीन सांख्ययोग आदि कई शाखाएं हैं / इन सब परम्पराओं के शास्त्र में, गुरुवर्ग और संघ में, आचार-विचार में; उत्थानपतन और विकास-ह्रास में इतनी अधिक ऐतिहासिक भिन्नता है कि उस-उस परम्परा में जन्मा व पला हुआ और उस-उस परम्परा के संस्कार से संस्कृत हुआ कोई भी व्यक्ति सामान्य रूप से उन सब परम्पराओं के अन्तस्तल में जो वास्तविक एकता है उसे समझ नहीं पाता। सामान्य व्यक्ति हमेशा भेदपोषक स्थूल स्तरों में ही फंसा रहता है पर तत्त्वचिंतक और पुरुषार्थी व्यक्ति जैसे-जैसे गहराई से निर्भयतापूर्वक सोचता है वैसे-वैसे उसको आन्तरिक सत्य की एकता प्रतीत होने लगती है और भाषा, आचार, संस्कार आदि सब भेद उसकी प्रतीति में बाधा नहीं
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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