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________________ वैशाली-विदेह .85 शासित / सामाजिक संबंध कितना ही निकट का और रक्त का हो तथापि यह स्थायी नहीं। हम दो चार पीढ़ी दूर के सम्बन्धियों को अकसर बिल्कुल भूल जाते हैं। यदि सम्बन्धियों के बीच स्थान की दूरी हुई या आना-जाना न रहा तब तो बहुधा एक कुटुम्ब के व्यक्ति भी पारस्परिक संबंध को भूल जाते हैं। परन्तु धर्म और विद्या के संबंध की बात निराली है। किसी एक धर्म का अनुगामी भाषा, जाति, देश, आदि बातों में उसी धर्म के दूसरे अनुगामियों से बिल्कुल ही जुदा हो तब भी उनके बीच धर्म का तांता ऐसा होता है मानो वे एक ही कुटुम्ब के हों। चीन, तिब्बत जैसे दूरवर्ती देशों का बौद्ध जब सिलोन, बर्मा आदि के बौद्धों से मिलेगा तब वह आत्मीयता का अनुभव करेगा। भारत में जन्मा और पला मुसलमान मक्का-मदीना के मुसलमान अरबों से घनिष्ठता मानेगा। यह स्थिति सब धर्मों की अकसर देखी जाती है। गुजरात, राजस्थान, दूर दक्षिण कर्णाटक आदि के जैन कितनी ही बातों में भिन्न क्यों न हों पर वे सब भगवान् महावीर के धर्मानुयायी के नाते अपने में पूर्ण एकता का अनुभव करते हैं। भगवान महावीर के अहिंसाप्रधान धर्म का पोषण, प्रचार वैशाली और विदेह में ही मुख्यतया हुआ है। जैसे चीनी, बर्मी आदि बौद्ध, सारनाथ, गया आदि को अपना ही स्थान समझते हैं, वैसे ही दूर के जैन महावीर के जन्मस्थान वैशाली को भी मुख्य धर्म स्थान समझते हैं और महावीर के धर्मानुगामी होने के नाते वैशाली में और वैसे हो अन्य तीर्थों में मिलते हैं। उनके लिए बिहार और खासकर वैशाली मक्का या जेरुसेलम है। यह धार्मिक संबंध स्थायी होता है। काल के अनेक थपेड़े भी इसे क्षीण कर नहीं सके हैं और न कभी क्षीण कर सकेंगे। बल्कि जैसे-जैसे अहिंसा की समझ और उसका प्रचार बढ़ता जायगा वैसेवैसे ज्ञातृपुत्र महावीर की यह जन्मभूमि विशेष और विशेष तीर्थ रूप बनती जायगी। हम लोग पूर्व के निवासी हैं / सोक्रेटिस, प्लेटो, एरिस्टोटेल आदि पश्चिम के निवासी। वुद्ध, महावीर, कणाद, अक्षपाद, शंकर, वाचस्पति आदि भारत के सपूत हैं, जिनका युरोप, अमेरीका आदि देशों से कोई वास्ता नहीं। फिर भी पश्चिम और पूर्व के संबंध को कभी क्षीण न होने देनेवाला तत्त्व कौन है ऐसा कोई प्रश्न करे तो इसका जबाब एक ही है कि वह तत्त्व है विद्या का। जुदे-जुदे धर्मवाले भी विद्या के नाते एक हो जाते हैं। लड़ाई, आर्थिक खींचातानी, मतान्धता आदि अनेक विघातक आसुरी तत्त्व आते हैं तो भी विद्या ही ऐसी चीज है जो सब जुदाइओं में भी मनुष्य-मनुष्य को एक दूसरे के प्रति आदरशील बनाती है। अगर विद्या का सम्बन्ध ऐसा उज्ज्वल और स्थिर है तो कहना होगा कि विद्या के नाते भी वैशालीविदेह और बिहार सबको एक सूत्र में पिरोवेगा क्योंकि वह विद्या का भी तीर्थ है। .. महात्मा गांधीजी ने अहिंसा की साधना शुरू तो की दक्षिण अफ्रीका में, पर उस अनोखे ऋषि-शस्त्र का सीधा प्रयोग उन्होंने पहले पहल भारत में शुरू किया, इसी विदेह क्षेत्र में। प्रजा की अन्तश्चेतना में जो अहिंसा को विरासत सुषुप्त पड़ी थी, वह गांधीजी की एक मौन पुकार से जग उठी और केवल भारत का ही नहीं पर दुनिया भर का ध्यान देखते-देखते चम्पारन, बिहार की ओर आकृष्ट हुआ। और महावीर तथा बुद्ध के समय में जो चमत्कार इस विंदेह में हुए थे वही गांधीजी के कारण भी देखने में आये। जैसे अनेक क्षत्रिय
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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