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________________ नदी में प्राकृत अध्यायन् । 381 [24 21वीं सदी में प्राकृत अध्ययन: दशा एवं दिया प्रो. प्रेमसुमन जैन (उदयपुर) प्राकृत भाषा और उसका साहित्य जन सामान्य की संस्कृति से समृद्ध है। स्वाभाविक रूप से प्राकृत भाषा जनता से सम्पर्क रखने का एक आदर्श साधन बन जाती है। इसीलिए प्राकृत भाषा को समुचित आदर प्रदान करते हुए तीर्थंकर महावीर, सम्राट अशोक एवं खारवेल जैसे महापुरुषों ने अपने संदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए प्राकृत का उपयोग किया है। जैन आगमों में प्राकृत का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है, किन्तु वेदों की भाषा में भी प्राकृत भाषा के तत्त्वों का समावेश है। भारत के अधिकांश प्राचीन शिलालेख प्राकृत में हैं। प्रारम्भ से ही इस देश के नाटकों में प्राकृत का प्रयोग होता रहता है। ये सभी विवरण हमें सूचना देते हैं कि इस देश की जनता की स्वाभाविक भाषा, मूलभाषा प्राकृत रही है। समय समय पर सामान्य जन की विभिन्न बोलियां साहित्यिक प्राकृत का रूप भी ग्रहण । करती रही हैं। प्राकृत से अपभ्रंश एवं अपभ्रंश से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास । हुआ है। जैन श्रमण प्राकृत की विभिन्न बोलियों का अच्छा ज्ञान रखते थे। उनके धार्मिक उपदेश सदैव प्राकृत में होते थे। उनके द्वारा लिखित महत्त्वपूर्ण दार्शनिक एवं कथात्मक साहित्य के काव्य, नाटक, स्तोत्र, उपन्यास आदि ग्रन्थ सरल एवं सुबोध प्राकृत में हैं। इसके अतिरिक्त कथा, दृष्टान्त-कथा, प्रतीक कथा, लोककथा आदि विषयक ग्रन्थ भी प्राकृत में लिखे गये हैं, जो मानव मूल्यों और नैतिक आदर्शों की सही शिक्षा देकर व्यक्ति को श्रेष्ठ नागरिक बनाते है। प्राकृत में लिखे गये सबसे प्राचीन ग्रन्थ आगम कहे जाते हैं। इनमें जैनधर्म एवं दर्शन के प्रमुख नियम वर्णित हैं और विभिन्न विषयों पर अनेक सुन्दर कथाएं दी गयी हैं। आगम और उसका व्याख्या साहित्य प्राकृत कथाओं का अमूल्य खजाना है। प्राकृत लेखकों के द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण धर्मकथा ग्रन्थ भी लिखे गये हैं, जो कथाओं के कोश हैं। प्राकृत में कई प्रकार के काव्य ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं। कई । कवियों एवं अलंकार-शास्त्रियों ने अपने लाक्षणिक ग्रन्थों में प्राकृत की सैकड़ों गाथाओं । को उद्धृत कर उनकी सुरक्षा की है। .. ___प्राकृत साहित्य के इस विशाल समुद्र के अवगाहन से वह अनुपम एवं बहुमूल्य सामग्री प्राप्त होती है, जो भारत के सांस्कृतिक इतिहास का सुन्दर चित्र प्रस्तुत करने में सक्षम |
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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