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________________ 335 ( आत्मा ? ), धर्म ( गति माध्यम), अधर्म ( स्थिति माध्यम), आकाश ( अवगाहन माध्यम ) तथा काल (परिवर्तन माध्यम) को अमूर्त माना है। इसके विपर्यास में, छठे पुद्गल द्रव्य को मूर्त माना है। इसके अन्तर्गत सशरीरी जीव भी समाहित होता है। यही द्रव्य रसायन से सर्व रूप से संबंधित है। पुद्गल द्रव्य और परमाणुवाद पुद्गल का अर्थ ऐसा मूर्त द्रव्य है जिसमें पूरण, गलन, संगलन एवं विदलन के गुण पाए जाते हैं। इसके मुख्यतः दो भेद माने गये हैं: - (1) अणु ( परमाणु ? ) जो सूक्ष्मतम एवं अविभागी आदि गुणों से युक्त होता है। यह पुद्गल के चार भेदों स्कन्ध, स्कन्ध देश, स्कन्ध प्रदेश व परमाणु-में से एक है। ( 2 ) स्कन्ध (भौतिक या रासायनिक) जो परमाणुओं के समुच्चय या विच्छेदन से उत्पन्न होता है। 1 अकलंक आदि आचार्यों से परमाणु को अणु कहा है, पर उत्तरवर्ती व्याख्याकारो त्रिलोक प्रज्ञप्ति आदि ने इसे 1 परमाणु ही बताया है क्योंकि अन्य दर्शनों में परमाणु शब्द का ही उपयोग है। इसलिए व्यावहारिकता के लिए 1 प्रत्यक्ष के दो भेद एवं परमाणु के दो भेदो के समान अणु के बदले परमाणु शब्द का भी उपयोग होने लगा । यही नहीं, वैज्ञानिक परमाणु के अनेक घटको में विभाजन के बाद तथा वैज्ञानिकों द्वारा परमाणु की अविभागिता के कारण परमाणु बंधो से उत्पन्न समस्या के कारण पहली- दूसरी सदी में ही अनुयोगद्वार में ही इसके दो भेद कियेः (1) निश्चय परमाणु और (2) व्यवहार परमाणु । ये भेद वैज्ञानिक एवोगाड्रो की संकल्पना के अनुरूप अनेक समस्याओं का समाधान करते हैं। ये परमाणु के अन्य भेदों से भिन्न हैं। अनेक विद्वानों ने वैज्ञानिक परमाणु के निरन्तर वर्धमान सूक्ष्मतर अवयवों में से किसी एक नवीनतम अवयव के समकक्ष ( क्वार्क तक ) माना, पर अब इसे चरम परमाणु कहा जाने लगा है जो अविभाज्य ही रहेगा। इससे व्यवहार परमाणु (अणु ?) वर्तमान परमाणु ! के समकक्ष विभाज्य परमाणु बन गया। इस प्रकार, हम देखते हैं कि 5-8 वीं सदी का शास्त्रीय कणमय परमाणु अब चरम परमाणु, तरंकणी और पूर्णतः अविभागी बन गया है। हमारा रासायनिक व्यवहार अब मात्र अणुओं या व्यवहार परमाणुओं से रहता है। परमाणु के अनेक गुण पुद्गल के गुणों में ही समाहित होते हैं। विभिन्न शास्त्रों परमाणुओं से संबंधित चार प्रकार के गुणों का उल्लेख है । 1 गतिशीलता 1 1 परमाणु की स्वाभाविक या प्रयोगज गतिशीलता नियत और अनियत भी होती है। इसकी न्यूनतम गति आकाश के एक प्रदेश मात्र प्रति समय है जबकि इसकी उच्चतम गति 1027-1047 सेमी. प्रति समय है। शास्त्रों में सामान्य या लौकिक गति का विवरण नहीं है। यह गति सामान्य या विशेष परिस्थितियों में बंधनकारी भी होती है। इस आधार पर सात प्रकार की गति के उल्लेख हैं। ऐसा माना जाता है कि परमाणु की गति में उसका स्निग्धत्व कारण है। वैज्ञानिक जगत अपने परमाणुओं की सामान्य गति 10-10 सेमी /प्रति से. मानता है । इस विषय में शास्त्रीय विवरण खोजना चाहिए। लोकान्त पर इनमें गति नहीं होती क्योंकि वहाँ गति माध्यम नहीं होता और रुक्षता बढ़ जाती है। 1 अविनाशिता चरम परमाणु की अविनाशिता प्रायः सभी दर्शनों ने मानी है। यह 15वीं सदी के लोमनसोफ के द्रव्यमान की अविनाशिकता के सिद्धांत से समर्थित होती है। पर जब से आइंस्टीन ने सूक्ष्म कणों एवं ऊर्जाओं को परस्पर परिवर्तनीय माना, तब से उपरोक्त वैज्ञानिक सिद्धांत को द्रव्यमान और ऊर्जा की अविनाशिता के रूप में
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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