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________________ 10 सौभाग्यशाली हैं डॉ. शेखरचन्द्र जैन जिन्होंने पूर्वजन्मों पुण्यार्जन से प्राप्त विद्या, तत्वज्ञान, सदाचार व संस्कार के द्वारा सेवाभावी के रूप में विदेशों में अपनी समन्वयात्मक छबि तथा आत्मपुरुषार्थ से सिद्धि - शिखर तक की यात्रा की। जैन साहित्य, शोध ग्रन्थ, उपन्यास, कहानी व समीक्षा की पुस्तकों में अपने लेखन से नव साहित्य का सृजन किया। आपके द्वारा लिखित शोधपत्रों ने गोष्ठियों में चार चाँद लगाये हैं। पिछले १५ वर्षों से 'तीर्थंकर वाणी' व अन्य ग्रंथों का कुशल संपादन किया एवं देश-विदेश में विविध भाषाओं के माध्यम भावी पीढ़ी को शिक्षा देने का गौरवपूर्ण कार्य किया है। अनेक उपाधियों और पुरस्कारों से विभूषित आपने समाज सेवा, गरीबों की चिकित्सा करना अपने जीवन का लक्ष्य समझा। ऐसे बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न ख्याति प्राप्त, सशक्त लेखनी के धनी शेखरजी का सम्मान सम्पन्न हो रहा है यह विशेष महत्त्वपूर्ण है। हमारा बहुत - बहुत आशीर्वाद । Pa आ. भरतसागर अणिंदा अतिशय क्षेत्र दि. १९-१०-२००६ (समाधि से कुछ ही दिनपूर्व प्रेषित आशीर्वाद) स्मृतियों के वातायन से आप सरस्वती के पुत्र हैं इस नाते आपका जो अभिनंदन आपका अभिनन्दन पूरे गौरव गरिमा के द्वारा सम्पन्न ग्रंथ प्रकाशित होने जा रहा है उसके लिए हमारे निर्मल हो । आदरणीय देव शास्त्र गुरू भक्त, धर्म दिवाकर, सरस्वती के पुत्र आदर्श श्री डॉ. शेखरचन्द्रजी के समस्त परिवार को सिद्धक्षेत्र गिरनार से हमारी तरफ से रत्नात्रय वृद्धि शुभ आशिर्वाद । विगत ४५ वर्षों से जब से हमने आपको देखा है- आप सेवा कार्य कर रहे हैं। आपने जिनवाणी माता का आदर्श पूरे विश्व में फैलाया एवं अमृत वचनों द्वारा ज्ञान गंगा का रसपान कराया है। जिस प्रकार तीर्थंकर भगवान की वाणी का गणधर द्वारा अनेक भाषाओं में प्रचार हुआ था उसी प्रकार इस पंचम काल में तीर्थकरों की वाणी आचार्यश्री धरसेन, पुष्पदन्त, भूतबली, कुन्दकुन्दाचार्य, उमास्वामी जैसे अन्य आचार्यों के द्वारा प्रचारित हुआ । उससे हमें ज्ञान प्राप्त हुआ। उसी प्रकार गणधर की भाँति अनेक भाषाओं में लिपिबद्ध कराकर 'तीर्थंकर वाणी' के माध्यम से आपने देश-विदेश में अपनी वाणी से जो कार्य किया है वह सराहनीय है। आत्मा से आशिर्वाद है। और जब तक सूरज चाँद रहे तब तक आपकी कीर्ति विश्व में फैलती रहे । आ. निर्मलसागरजी विश्व शांति निर्मल ध्यान केन्द्र, गिरनार तलेटी, जूनागढ़
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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