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________________ रणं परम्परा 2297 . सोमदेवसूरि । सोमदेवसूरि ने उक्त शब्दार्णव व्याकरण पर 'चन्द्रिका' नामक की अल्पाक्षर वृत्ति की रचना की है। यह वृत्ति सनातन जैन ग्रन्थमाला काशी से प्रकाशित है। ग्रन्थान्त में मुद्रित प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि कोल्हापुर के अजरिका ग्राम में त्रिभुवन तिलक नामक मन्दिर में वि.सं. 1265 में प्रकृत टीका लिखी जाकर पूर्ण हुयी। वित्रान्त विद्याधर व्याकरण- वामन ___ आचार्य हेमचन्द्र एवम् वर्धमान सूरि ने गणरत्न महोदधि में लिखा है कि वामन ने विश्रान्त विद्याधर नामक ग्रन्थ लिखा था। वामन वर्धमान को सहृदय चक्रवर्ती की उपाधि से भी विभूषित किया गया है। युधिष्ठिर मीमांसक के मतानुसार इनका स्थितिकाल वि.सं. 400 से 600 के मध्य ठहरता है। विश्रान्त विद्याधर व्याकरण पर मल्लवादी ने न्यास की रचना भी की थी, जैसा कि प्रभावक चरित में उल्लेख किया गया है। शाकटायन व्याकरण __व्याकरण शास्त्र में शाकटायन नाम से वैयाकरण प्रसिद्ध हुए हैं। प्रथम शाकटायन पाणिनि से पूर्ववर्ती हैं द्वितीय शाकटायन ही जैन वैयाकरण हैं, जिनका अपर नाम पाल्यकीर्ति है। इनका काल युधिष्ठिर मीमांसक ने वि.सं. 871 से 924 के मध्य स्थित किया है, यही प. प्रेमी का मन्तव्य है। ___ पाल्यकीर्ति कृत शब्दानुशासन का नाम शाकटायन संभवतः व्याकरणशास्त्र की उत्कर्षता ज्ञापित कराने हेतु पड़ गया। पाल्यकीर्ति शाकटायन की प्रशस्ति में वादिराज सूरि ने पार्श्वनाथचरित में लिखा है कुतस्त्याः सा शक्तिःपाल्यकीर्तेर्महौजसः। श्रीपदश्रवणं यस्य शाब्दिकान्कुरुते जनान्॥ अर्थात् उन महान पाल्यकीर्ति की शक्ति का क्या कहना जिनका श्रीपद श्रवण ही लोगों को शाब्दिक- ! व्याकरण बना देता है। शाकटायन यापनीय संप्रदाय के आचार्य थे, उनकी व्याकरणशास्त्रेतर एक और रचना मिलती है, स्त्रीमुक्ति केवलिभुक्ति प्रकरण, शाकटायन महान शाब्दिक, सिद्धान्तज्ञ, तार्किक एवम् काव्यशास्त्री थे। • पाल्यकीर्ति विरचित शाकटायन व्याकरण परिपूर्ण एवम् सर्वांगीण है। ग्रन्थ में चार अध्याय हैं तथा प्रत्येक अयाय में 4-4 पाद हैं एवम् प्रथम में 721 सूत्र, द्वितीय में 753 सूत्र, तृतीय में 75 5 एवम् चतुर्थ में 1007 सूत्र, इस प्रकार 3236 सूत्रकायिक यह ग्रन्थ है। मूलसूत्रों में अपने पूर्ववर्ती समस्त वैयाकरणों के मतों का समाहार करने के कारण इस शास्त्र में इष्टियां नेष्ट हैं, सूत्र से पृथक् वक्तव्यों का अभाव है। अतः यहां उपसंख्यानम् का अभाव है जबकि पाणिनीय व्याकरण के सूत्रों की पूर्ति हेतु 'वक्तव्यम्' 'उपसंख्यानम्' पदयुक्त वार्तिकों का अवलंबन लेना पड़ता है। इन्द्र चन्द्र आदि शाब्दिकों द्वारा शब्द का जो लक्षण प्रतिपादित किया है, वह सब यहां है और जो यहां नहीं है, वह अन्यत्र कहीं नहीं है। जैसाकि शाकटायन-व्याख्याकार यक्षवर्मा ने चिन्तामणि टीका में भी लिखा है। 7 शाकटायन व्याकरण की अमोघवृत्ति टीका 18 हजार श्लोक परिमाण वाली है। ग्रन्थकार ने अपने आश्रयदाता अमोघवर्ष के नाम पर इसका नामकरण अमोघवृत्ति किया है। वह वृत्ति पाणिनीय व्याकरण पर काशिका वृत्ति से प्रभावित तथा अत्यन्त विशद है।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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