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________________ RAMERIENCES वर्ष एवं सफलता की कहानी 1697 न्युहेवन, सानफ्रान्सिस्को, टेम्पा, सानहोजे, सिनसिनाटी, कनेक्टीकट, वेको, टोरेन्टो (केनेडा), मेम्फिस, कोलंबस, सानडियागो, डेट्रोईट आदि मुख्य हैं। इनमें अनेक सेन्टर जैसे डलास, ओरलेन्डो, लोस एन्जलिस, न्युयोर्क, बोस्टन, सानफ्रान्सिस्को, टेम्पा, सानडियागो आदि में दो बार से लेकर चार बार तक जाने का अवसर प्राप्त हुआ। इसी यात्रा के दौरान न्यूजर्सी, कोलंबस, कनेक्टीकट, बोस्टन, टेम्पा में पर्युषण एवं न्यूयोर्क, लोस एन्जलिस, बोस्टन जैसे सेन्टरों पर दसलक्षण पर्व में जाने का मौका मिला। शिकागो एवं सानफ्रान्सिस्को में जैना के अधिवेशनों में भाग लेकर सक्रिय रूप से प्रवचनादि करने का मौका मिला। इन सेन्टरों पर जैन सेन्टरों के उपरांत जो भी दर्शनीय महत्वपूर्ण स्थान थे उन्हें भी देखने का मौका मिला। जिनमें स्टेच्यु ऑफ लिबर्टी, यूनो भवन, केनेडी सेन्टर, व्हाईट हाऊस, एडिसन म्युज़ियम, वोशिंग्टन डीसी के अनेक म्यूज़ियम, लास वेगास एवं एटलान्टीक । सीटी के केसिनो, ग्रांड केनियन, किंग मार्टन ल्यूथर की जन्मभूमि, सानफ्रान्सिस्को के दर्शनिय स्थान, सानडियागो, मियामी, फ्लोरिडा के सी बीच, सेन्ट लुईस का आर्च, फोर्ड मोटर कंपनी, नायग्राफ हॉल, एपकोट सेन्टर, यूनिवर्सल स्टुडियो, डिज़नी वर्ल्ड, यशोमेटी की गिरीमालायें जैसे अनेक स्थानों का समावेश है। ___ अमरीका का वीज़ा लेना ____ अमरीका जाने का अनुभव ही वर्णनातीत था। सारी व्यवस्था वहाँ श्री निर्मलजी दोशी जो जैना की ओर से विद्वानों को आमंत्रित करनेवाली समीति के अध्यक्ष हैं- उन्होंने स्पोन्सर लेटर भेजा। मैं अपने एजन्ट से सारे कागजात तैयार कराके व्यवस्थित फाईल तैयार करके बंबई पहुँचा। वहाँ अमरीका के दूतावास में अपार भीड़लंबी लाईन देखकर ही भौंचक्का रह गया। खैर! लाईन में लगे जबतक नंबर आये तब तक एक घोषणा हो गई | कि श्याम-श्वेत फोटो नहीं चलेंगे। रंगीन ही चाहिए। समस्या खड़ी हुई दौड़े-दौड़े स्टुडिओ गये। जिसने १० रू. के १०० रू. लिये- वहाँ फोटो खिंचवाये। पुनः दूतावास आये। पर कहा गया कि आज का समय हो गया है। निराश होकर लौटे। उस समय श्री गणपतलालजी झवेरी जो जवाहिरात के व्यापारी से अधिक साहित्य और संगीत में रूचि रखते थे। विद्वानों का सदैव सन्मान करते और उनके साथ सत्संग करते। पर्युषण व्याख्यान माला में मेरा उनसे परिचय हुआ, मित्रता हुई जो आत्मीयता में परिवर्तित हुई। उनका घर पास ही था। अतः उस दिन वहीं रुक गये। दूसरे दिन प्रातःकाल जल्दी पहुँचा- इतनी जल्दी पहुँचकर देखा कि मुझ से पूर्व ही लगभग ५० लोग आ चुके हैं। अंदर प्रवेश मिला। वीज़ा हेतु पहले से ही पैसे भर देने पड़ते हैं। मुझे जिस खिड़की पर भेजा गया वहाँ अमरीकन महिला बैठी थी। मैं जो व्यवस्थित पूरी फाईल इन्डेक्स के साथ ले गया था वह उन्हें दिखाई। फाईल देखकर वे अति प्रसन्न हुईं। इससे मेरी पूर्व भूमिका अच्छी बनी। उन्होंने मेरे अध्यापक होने से बड़ी इज्जत से बात की। इधर-उधर के प्रश्न पूछकर यही जानना चाहा कि मैं कहीं अमरीका में रुक तो नहीं जाऊँगा? उन्होंने पूछा 'कैसा वीज़ा चाहिए? सिंगल एन्ट्री का या मल्टीपल।' मैंने कहा 'जो आप दे सकें।' उन्होंने घुमाकर प्रश्न किया। “यदि हम आपको मल्टीपल वीज़ा दे और वहाँ रहें तो क्या बुरा है?" वास्तव में वे मुझे टटोल रहीं थीं। मैंने भी । डायलोग मारा 'मैं आपके देश में क्यों रहूँगा? मेरा देश स्वयं समृद्ध है। मैं यहाँ सुखी हूँ। मैं तो आपके देश में भारतीय संस्कृति के आदान-प्रदान हेतु जा रहा हूँ।' मेरा उत्तर उन्हें अधिक प्रभावित कर गया। वे प्रसन्न होकर । बोली 'सर! मैं आपको मल्टीपल वीज़ा प्रदान करूँगी।' मैंने भी उनका धन्यवाद किया। शाम ४ बजे वीज़ा मिला। । इसप्रकार बहुत बड़ा विघ्न सफलता से पार हुआ। अमरीका के वीज़ा में ७० प्रतिशत लोग तो रिजेक्ट होते हैं। मुझे लगा यह धर्म का ही प्रभाव है।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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