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________________ सुतियों के वातावन 166 वर्षों के भावनगर के प्रवास को सलाम करके अहमदाबाद अपने घर आ गया । अहमदाबाद में कॉलेज जोइन कर ली। पर अनेक सरकारी नियमों की वैतरणी पार करनी पड़ी। यह जगह एस.सी., एस. टी. की होने से कुछ टेकनीकल कठिनाईयाँ भी हुईं। उधर तीन महिने का नोटिस पे देने का संकट भी खड़ा हुआ। आखिर छह महिने तक कानूनी चक्रव्यूह में उलझे रहने के बाद तत्कालीन शिक्षा मंत्री और मेरे हितेषी मित्र श्री अरविंदभाई संघवी की सहायता से उसमें भी पार हो सका। सभी झंझटें निपटीं । नैरोबी का निमंत्रण १९८८ में अहमदाबाद आ गया था । मेरा परिचय लंदन में ही नैरोबी से पधारे श्री सोमचंदभाई से हो गया था। उन्होंने नैरोबी आने का निमंत्रण दिया । सन् १९९०-९१ में नैरोबी में एक बहुत बड़ी अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी हुई जिसमें मुझे पाँच शोधपत्र प्रस्तुत करने का निमंत्रण मिला। तीन महिने पश्चात वहाँ जाना था। वहाँ बंधु त्रिपुटी तीनों महाराज पधारे थे। लगभग २१ दिन का कार्यक्रम था । नैरोबी के उपरांत मोम्बासा, थीका आदि स्थानों को ! देखने वहाँ के विशाल मंदिर और सोन्दर्य से भरपूर स्थानों को देखने का अवसर मिला । नैरोबी बड़ा ही खूबसूरत हिल स्टेशन है जो कीनिया (पूर्व आफ्रिका) की राजधानी है। शहर बड़ा ही खूबसूरत, व्यवस्थित जैसा अंग्रेजों ने छोड़ा था वैसा ही है। यहाँ अनेक स्कूलों की मुलाकात भी की । यह मुस्लिम देश है परंतु यहाँ कक्षा १०वीं तक धर्म का अध्ययन छात्रों के लिए अनिवार्य है। जिसमें ख्रिस्ती धर्म, इस्लाम धर्म साथ ही हिन्दू धर्म जिसके अन्तर्गत सिक्ख धर्म, बौद्ध धर्म एवं जैनधर्म का अध्ययन कराया जाता है। यह जानकारी एक सुखद आश्चर्य था । नैरोबी की सेन्चुरी विश्व की श्रेष्ठतम सेन्चुरी में एक है। जो लगभग ४००० मिल के विशाल क्षेत्र में फैली हुई है। नैरोबी के निवासी श्री डोडियाजी जो बहुत बड़ी मिल के मालिक हैं- मुझे पूरे दो दिन वहीं सेन्चुरी के फाईवस्टार हॉटल में रखकर प्राईवेट कोम्बी गाड़ी में घुमाते रहे । वन्य सृष्टि को इस स्वतंत्रता से घूमते हुए निकटतम दूरी से देखने का यह पहला रोमांचक अनुभव था । जंगलों में स्वच्छंद रूप से विचरते सिंह बड़ी संख्या ! में अपने परिवार के साथ स्वच्छंद रूप से घूम फिर रहे थे। कहीं सिंहनी अपने बच्चों को दूध पिला रही थीं, कहीं हिरन चौकडी भर रहे थे तो कोई हिरनी बच्चे को स्तनपान करा रही थी। कहीं वृक्ष पर चीते (तेंदुओ) चड़े हुए थे तो अनेक जंगली भैंसे इधर-उधर दौड़ रहे थे। शुतुरमुर्ग जैसे प्राणी और कांगारू दौड़ते हुए दिखाई दे रहे थे। शेर जब भूखा होता है तभी शिकार करता है । यदि जंगल में कहीं शेर ने शिकार किया हो और वह दृश्य पर्यटकों को देखने को मिल जाये तो उसे लोग पर्यटन की सार्थकता मानते है। हमें उस दिन पता चला कि शेरने किलिंग किया है अनेक पर्यटकों के साथ हम भी उस ओर गये। एक विशाल जंगली पाड़े को फाड़कर शेर अपने पूरे परिवार के साथ माँसाहार कर रहा था। चारों ओर मक्खियाँ भिनभिना रहीं थीं। बड़ा वीभत्स दृश्य था । जुगुप्सा पैदा हो रही थी। हमने जैसाकि उपर वर्णन किया है, अनेक फोटो लिये थे। सभी फोटो बहुत ही स्पष्ट आए ! परंतु यह किलिंग का फोटो दो-तीन बार लेने के बाद भी साफ नहीं आया। क्योंकि हमारे मन में एक तो मरे हुए पाड़े को देखकर जुगुप्सा पैदा हो रही थी। उसकी मौत पर पश्चाताप हो रहा था और ऐसे हिंसक दृश्य को देखकर मन विचलित हो रहा था। शायद हमारी इन्हीं भावनाओं के कारण वह चित्र स्पष्ट नहीं आया । इसीप्रकार थीका के फोल्स (जल प्रपात ) जहाँ सात नदियाँ एक साथ गिरती हैं, जहाँ सदैव धुँआधार रहता ! है। जहाँ पानी सिर्फ हवा में उड़ते हुए फैन के रूप में ही देखा जा सकता है, इसकी गर्जना मीलों से सुनाई देती है।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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