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________________ 164 की उड़ान के पश्चात हीथरो हवाई अड्डे पर हवाई जहाज उतरा। हमलोग नीचे उतरे। कुछ पता तो था नहीं सो ! श्री मनुभाई सेठ एवं अन्य यात्रियों का अनुकरण करते हुए कस्टम में पहुँचे। कस्टम से निपटकर बाहर आये। वहाँ अध्यक्ष श्री नटुभाई उपस्थित थे अगवानी के लिए। उनकी ए.सी. कार लंदन की चौड़ी सड़कों से गुजरकर लेसेस्टर की ओर दौड़ रही थी । स्पीड की लगभग ८० से १०० मील। सवा घंटे में ही लेसेस्टर पहुँचे। वहाँ की जलवायु के अनुसार बड़े मकान, चौड़ी सड़के, बड़े-बड़े | उद्यान सबकुछ नया नया । नटुभाई का विशाल घर जो अब प्रतिष्ठा का कार्यालय बन गया था। हम लोगों को ! ठहराने के लिये लेसेस्टर युनिवर्सिटी का होस्टेल तय था । पर वहाँ के रहनेवाले छात्रों का माँसाहारी होने के कारण मैं वहाँ नहीं ठहर सका। आखिर मैं और मनुभाई सेठ नटुभाईजी के घर में ही रहे। यहाँ हम लोग प्रतिष्ठा के कार्य को अंजाम देते। पूरे दिन काम करते। मुझे कार्यक्रम पर प्रकाशित होने वाले 1 सुवेनियर ( स्मरणिका) के संपादन और प्रूफ रीडिंग का कार्य सौंपा गया। मैं प्रायः दिनभर प्रेस पर रहता । इतना बड़ा प्रेस पहली बार देखा । एक साथ मल्टीकलर छापने की ऑटोमेटीक मशीने, कम्प्यूटर पर कंपोज सब नया अनुभव था। प्रेस के मालिक मि. परमार युवा हँसमुख व्यक्ति थे। मेरी उनसे खूब बनती थी । महान नाटककार शेक्सपीयर की जन्मभूमि के दर्शन इसी दौरान हमको महान नाटककार सेक्सपियर की जन्मभूमि स्टेफर्डएवन देखने का सौभाग्य मिला। स्टेफर्ड नदी के किनारे बड़ा ही रमणीय छोटा सा शहर है। सेक्सपियर की इस जन्मभूमि में उनका पुराना मकान, ! म्युजियम देखने का मौका मिला। जहाँ उनके हस्ताक्षरित अनेक पृष्ठ ज्यों के त्यों रखे थे। वहाँ दो थीयेटर हैं, मीनी और बड़ा। पिछले साढ़े चारसौ वर्षों से निरंतर उसमें सेक्सपीयर के नाटक खेले जाते हैं। सदैव दर्शकों की भीड़ रहती है। पुराने कलाकार रिटायर्ड हो जाते हैं या मृत्यु हो जाती है, नये कलाकार उनका स्थान लेते हैं। यह सव वहाँ की प्रजा का साहित्य और साहित्यकार के प्रति अगाध प्रेम का प्रतीक है। लेस्टर का मंदिर लेसेस्टर का भव्य मंदिर पूरे यूरोप की शान है। यहाँ जैसे पूरा देलवाड़ा ही उतर आया है। मंदिर में चढ़ते ही भगवान बाहुबली की कायोत्सर्ग दिगम्बर मुद्रा की मूर्ति है। अंदर विशाल श्वेताम्बर आम्नाय का कलापूर्ण मंदिर है तो स्थानकवासियों का उपाश्रय है। श्रीमद् राजचंद्रजी का साधना कक्ष है। वास्तव में यह सर्व जैन संप्रदाय, समन्वय का प्रतीक मंदिर है। श्वेताम्बर प्रतिष्ठा हेतु पं. श्री बाबूभाई कड़ीवाला आमंत्रित थे तो दिगम्बर पंडित के रूप में प्रतिष्ठाचार्य पं. फतेहसागरजी आमंत्रित थे । प्रतिष्ठा बड़ी धूमधाम से हुई । प्रतिष्ठा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि पूरी प्रतिष्ठा का प्रारंभ श्री निर्मल कुमारजी सेठी द्वारा किया गया तो दिगम्बर प्रतिष्ठा का प्रारंभ सेठ श्री श्रेणिकभाई द्वारा संपन्न कराया गया। परिचर्चा के दौरान निर्मलजी सेठी की अध्यक्षता में पं. हुकुमचंद भारिल्ल के प्रवचन हुए। तात्पर्य कि समता, समानता, समज़दारी का यह अनुपम संगम था । कार्यक्रम के पश्चात तीन-चार दिन लंदन में रुके। वहाँ सबका भव्य अभिनंदन हुआ । वहाँ हमारे नये बने 1 मित्र श्री के.सी. जैन एवं अन्य मित्रों ने लंदन के दर्शनीय स्थानों की सैर कराई। रात्रि के प्रकाश में वकींगधम पैलेस (राजमहल) और लंदन की सड़कों पर घुमाकर अनहद रोमांचित किया। लगभग डेढ़ माह की यात्रा के पश्चात हम लोग लौट आये। हाँ लौटने पर बंबई एयरपोर्ट पर मेरा थैला जरूर चोरी हो गया जिसमें डायरी, गिफ्ट, खाने का सामान चला गया। 1
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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