SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 119 पिताजी की अहमदाबाद में आजीविका जैसाकि पहले उल्लेख कर चुका हूँ, पिताजी डकैती होने के बाद ही घर की समस्या से निपटने, कर्ज चुकाने और घर खर्च की समस्या से जूझने हेतु अहमदाबाद आ गये। चूँकि पढ़े-लिखे लगभग नहीं थे। कभी मेहनत 1 मजदूरी का काम नहीं किया था परंतु यहाँ अहमदाबाद आकर मजदूरी करना प्रारंभ किया। अहमदाबाद में हमारे कुछ संबंधी श्री अयोध्या प्रसादजी सिंघई, श्री ठाकुरदासजी आ चुके थे। उनकी सहायता से पिताजीने केरोसीन फेरी का कार्य प्रारंभ किया था। इसी तरह यहाँ मजदूरी करते । पेट काटकर भी रू. बचाते और गाँव के लोगों के भरण-पोषण हेतु पैसा भेजते रहते। मुझे स्मरण है कि हम लोग नागौरी की चॉल में एक मकान लेकर रहते थे। जिसका किराया ८ रू. महिना था। मकान में एक छोटा ६ x ६ का रसोई घर, १२ x १२ का कमरा और १२ x ६ का वरंडा था। घर में पानी, बिजली, संडास की कोई व्यवस्था नहीं थी। बिजली के स्थान पर चिमनी जलाते और पानी म्युनिसिपालिटी के नल से लाईन में लगकर भरते । निस्तार के लिए म्युनिसिपालिटी की टट्टियों का इस्तेमाल करते । वे इतनी गंदी व भीड़भाड़ वाली होतीं कि वहाँ नर्क की कल्पना ही साकार हो जाती । पिताजी पहले सर पर डब्बा रखकर केरोसीन बेचते । कुछ ग्राहकी बढ़ी तो बाँस की कावड़ पर दो डिब्बे बाँधकर मीलों फेरी करने जाते। जब धंधा कुछ जमने लगा तो हाथलारी पर माल ले जाकर फेरी करने लगे। उन्हें साईकल चलाना नहीं आता था। अतः चार पहिये की हाथलारी पर माल रखकर फेरी करते थे। लोगों की मदद से उन्हें केरोसीन बेचने का सरकारी लायसन्स प्राप्त हो गया था । अतः थोड़ी स्थिरता थी। मुझे स्मरण है कि वे नागौरी चॉल से आठ-दस कि.मी. लारी पर १०-१२ डिब्बे केरोसीन लादकर मणिनगर तक जाते। दोपहर १२ बजे आते थे। उनकी उस महेनत की कल्पना से ही आज रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वे दोपहर में एक-दो घंटे ही । खाना खाकर आराम कर पाते और पुनः शाम ४ बजे चालियों में माल बेचने चले जाते। इसप्रकार १० - १२ घंटे से अधिक मजदूरी करते थे। एक सच्चे श्रावक इस थकाने वाले काम को करते हुए भी उन्होंने कभी जैनधर्म के श्रावक के नियमों को नहीं तोड़ा । वे बिना जिनदर्शन किये पानी तक नहीं पीते थे । यदि कभी प्रातःकाल दर्शन चूक जाते तो पानी पिये बिना ही रह जाते। से आने के पश्चात स्नान करके दर्शन-पूजन के पश्चात ही कुछ लेते। उन्होंने कभी होटल, बाजार का खाना तो क्या पानी तक नहीं पिया था । गल्ले की चाय या पान खाने का तो प्रश्न ही नहीं था । कभी-कभी मुसाफरी में दो-दो दिन लग जाते। देव दर्शन नहीं मिलने पर उपवास कर लेते पर नियम का भंग कभी नहीं करते । जीवनभर कभी रात्रि में भोजन नहीं किया । अभक्ष्य का सेवन नहीं किया और पूजा पाठ में नियमित रहे । वे परम मुनिभक्त थे। उस समय मुनि दर्शन भी दुर्लभ थे । पर यदि कहीं अवसर मिलता तो वे मुनिदर्शन करना और चौका लगाने से नहीं चूकते। उन्होंने पू. गणेशप्रसादजी वर्णीजी से बरुआसागर में आजीवन डालडा घी का त्याग किया था और हाथचक्की से पीसे हुए आटे को ही उपयोग में लेने का नियम लिया था। जिसका निर्वाह अंतिम क्षण तक किया । मेरी माताजी सदैव हाथ चक्की से पीसती और उनके नियम निर्वाह में पूरी समर्पित रहतीं। अहमदाबाद की चॉल में रहकर मजदूरी करके भी उनका मन सदैव धार्मिक बना रहता। उन्हें एक ही बातकी चिंता रहती की यहाँ इस गोमतीपुर एरिया में समाज द्वारा निर्मित मंदिर नहीं तो एक छोटा सा चैत्यालय ही बन
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy