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________________ 108 स्मृतियों के वातायन मोतीलालजी से हुआ दोनों की वैचारिक साम्यता ने "तीर्थंकर वाणी" पत्रिका को जन्म दिया। पत्रिका के प्रमुख संपादक के रूप में श्री शेखरजी ने अपनी प्रतिभा को जन-जन तक परोसा एवं जागृत किया। ____ अपनी स्वस्थ योजनाओं को विदेश के प्रवासी भारतीय मूल के लोगों के सामने रखा। यह सुयोग ही था कि डॉ. शेखर जिनवाणी के प्रवक्ता के रूप में विदेशी प्रवासियों तक विदेश यात्रा पर गये। अपनी पत्रिका के माध्यम से अपना व अपनी योजनाओं का निकट से उन्हें परिचय करा पाये। डॉ. शेखर के मन में प्रवचन के अतिरिक्त पीड़ित मानव की सेवा की भावना थी। अतः अहमदाबाद में एक ट्रस्ट का गठन कर अस्पताल भवन बनाया आशापुरा माँ जैन अस्पताल प्रारंभ किया जिसमें प्रायः सभी ओ.पी.डी. हैं। आँख के विभाग को शासकीय मान्यता प्राप्त हुई है। ___ डॉ. शेखर ने अपनी मौलिक रचनाओं, शोध प्रबंधों, प्रवचनों एवं साधना शिविरों के माध्यम से अपनी कार्य कुशलता का परिचय दिया। एक कुशल पत्रकार की हैसियत से एवं कुशल संपादक के नाते ग.आ. ज्ञानमती पुरस्कार एवं उपा. ज्ञान सागर 'श्रुतसंवर्धन पुरस्कार' आदि प्राप्त किये हैं। 'आपका अभिनंदन समय की आवश्यकता एवं एक विद्वान की विद्वत्त का मल्यांकन है। ___ अर्जन के 25 वर्ष, सृजन के 24 वर्ष, विसर्जन के 9 वर्ष पूर्णकर 68 वर्षीय यह मनीषी विद्वान आज भी एक धावमान क्रिकेटियर (स्पोर्टमेन्स स्परिट) लिये समाज के समक्ष उपस्थित है। हम सब की शुभकामनायें आपके साथ हैं। आप शतायु हों। सिंघई जीवनकुमार (सागर) प्रखर अभिव्यक्ति के धनी भाई शेखरजी से परिचित हुए आज लगभग पच्चीस वर्ष हो चुके हैं। कदाचित वह कलकत्ता महानगरी थी, अधिवेशन चल रहा था। एक अपरिचित पर जाना-सुना नाम कुर्सी से उठा, बोलना शुरू किया, पाया डॉ. शेखर अहमदाबाद माईक पर हैं। गजब की अभिव्यक्ति, विषय की मधुर प्रस्तुति, व्यवस्था के प्रति तीखी प्रतिक्रिया, ! बेवाक टिप्पणी और स्वाभिमान को झकझोरती कथन-वल्लरियां। लगा विद्वत्ता की परिधि में अभी भी कुछ दम-खम है। __'मूक मीटी : चेतना के स्वर' मेरी ऐसी अनन्य कृति हैं। शेखरजीने जब इस कृति को देखा तो बड़े प्रसन्न हुए। उसकी महत्ता को जानकर इतने उत्साहित हुए कि उन्होंने इस पर कुछ छात्रों को शोधकार्य कराने का निश्चय । कर लिया। यह उनकी गुणग्राहिता का प्रतीक है। ___ इस तरह की ढेरों स्मृतियों मनमें उभर रही हैं पर उन्हें फिर कभी के लिए संजोकर रख रहा हूँ। बस, शेखर । की प्रगति से मन फूला हुआ है। चाहता हूँ, और भी फूलता रहे। प्रसन्नता हो रही है यह सोचकर कि महाकवि दिनकर की कविताओं से जूझता-उलझता शेखर आज शिखर पर पहुंचा जाजल्यमान नक्षत्र है, उसकी अपनी ऊंची पहचान है। एक ओर जैनधर्म की सांस्कृतिक परम्परा को प्रवचनों के माध्यम से देश-विदेश में वे प्रचारप्रसार कर रहे हैं तो दूसरी ओर चिकित्मालय जैसे सार्वजनिक प्रकल्य स्थापित कर उन्हें सस्वर चला रहे हैं। सामाजिक समरसता को प्रस्थापित करने में 'तीर्थंकर वाणी' के पचिन्हों पर चलनेवाला यह मुस्कराता । व्यक्तित्व निरामय रहकर शतायु हो और इसी तरह अपनी सात्त्विक प्रतिभा के प्रसून बिखेरता रहे, यही हमारी शुभकामना है। प्रो. डॉ. भागचन्द्र जैन 'भास्कर' (नागपुर) प्रधान संपादक- 'जैन तीर्थ संरक्षिणी' ।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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